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________________ २६ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [चारित्तक्खवणा सुद-मदिणाणावरणीयाणमणभागोदओ ण विरुद्धो; चरिमावरणवियप्पस्स तत्थ सव्वघादित्तदंसणादो त्ति । ण च विगलसुदधारयाणं खवगसेढिसमारोहोणासंभवो, दस-णव-पुन्बहाणं पि सेढिसमारोहणे संभवोवएसादो। तम्हा सबुक्कस्सखओवसमलद्धिप रणदसयलसुदणाणम्मि उक्कस्सकोडबुद्धिआदिचदुरमलबुद्धिविसिढे जीवे देसावरणीयसरूवो एदेसिमणभागोदओ, तदण्णत्थ सबघादिसरूवो त्ति एसो एत्थ सुत्तत्थसमावो एबमोहिणाणावरणादिसेमपयडीणं पि पयदत्थजोजणा जाणिय कायव्वा । णवरि ओहिमणपज्जरणाणावरणीयाणमोहिदसणावरणीयस्स च उत्तरोत्तरपयडिविवक्खाए विणा वि देस-पवघादित्तमणुभागोदयस्स संभवदि त्ति दडव्वं, सन्वेसु जीवेसु तेसिं खओवसमणियमाणुवलंभादो। संपहि एदस्सेव गाहासुत्तत्थस्स फुडीकरणट्ठमुवरिमं बिहासागंथमाढवेइ * लद्धीए विहासा। ६६१ सुगम । * जदि सव्वेसिमक्खराणं खओवसमो गदो, तदो सुदावरणं मदि पर भी उपरिमआवरणोंके भेदोंका सर्वघातिस्वरूपसे ही वहाँ प्रवृत्ति देखी जाती है । खेद है कि यदि एक अक्षरसे कम वह सम्पूर्ण श्रतका धारक होकर क्षपकश्रेणिपर आरोहण करता है तो भी उसके श्रुतज्ञानावरणीय और मनिज्ञानावरणीयके अनुभागका सर्वघातिस्वरूप उदय विरोधको प्राप्त नहीं होता, क्योंकि अन्तिम आवरणके भेदका उसके सर्वघातिपना देखा जाता है। और विकल श्रुतधरोंका क्षपकाश्रेणिपर आरोहण करना असम्भव नहीं है, क्योंकि दस पूर्वधर और नौ पूर्वधरोंका भी क्षपकश्रेणिपर आरोहण करना सम्भव है, ऐसा आगमका उपदेश है । इसलिये सबसे उत्कृष्ट क्षयोपशमलब्धिसे परिणत सकल तज्ञानी जीवके तथा उत्कष्ट कोष्ठबुद्धि आदि चार निर्मल बुद्धिसे युक्त जीवके इन दोनों प्रकृतियोंके अनुभागका देशघातिस्वरूप उदय होता है तथा उनसे अन्य क्षपक जीवोंके सर्वघातिस्वरूप ही उदय होता है इस प्रकार यह प्रकृत में सूत्रका अर्थके साथ सद्भाव है। इसी प्रकार अवधिज्ञानावरण आदि शेष प्रकृतियोंकी भी प्रकत अर्थके साथ जानकर योजना कर लेनी चाहिये । इतनी विशेषता है कि अवधिज्ञानावरण, मनःपर्ययज्ञानावरण और अवधिदर्शनावरण की उत्तरोत्तर प्रकृतियोंकी विवक्षाके विना भी देशघाति और सर्वघातिरूपसे अनुभागका उदय सम्भव है ऐसा जानना चाहिये, क्योंकि सभी जीवोंमें उन प्रकृतियोंके क्षयोपशमका नियम उपलब्ध नहीं होता है । अब उक्त गाथासूत्रके इसी अर्थको स्पष्ट करनेके लिये आगेके विभाषा ग्रन्थको आरम्भ करते हैं-- * 'लद्धीए' इस पद की विभाषा इस प्रकार है। ६६१ यह सूत्र सुगम है। * यदि सभी अक्षरोंका क्षयोपशम हो गया है तब यह जीव श्रुतज्ञानावरण और मतिज्ञानावरणका देशघातिरूप वेदन करता है।
SR No.090228
Book TitleKasaypahudam Part 16
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages282
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size25 MB
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