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________________ ८ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे * से काले पठमसमयसुहुमसांपराइयो । १७ सुगमं । * ताधे सुहुमसांपराइयकिट्टीएमसंखेज्जा भागा उदिण्णा । $ १८ कुदो ? हेट्टिमोवरिमासंखेज्जदिभागं मोत्तूण मज्झिमबहुभाग सरूवेणेव तासिमुदयणियमदंसणादो । तम्हा हेट्ठिमोवरिमासंखेज्जभागविसयाओ किड्डीओ मोत्तूण सेसमज्झिमबहुभाग सरूवेण मुहुमकिट्टीओ पुव्वत्तेण पदेसविण्णासविसेसेण उदीरेमाणो एसो पढमवसमय सुहुमसांपराइओ जादो त्ति एसो एत्थ सुत्तत्थसन्भावो । संबहि एत्थ हेट्ठिमोवरिमाणमणुदिण्णकिट्टीणमुदिण्णमज्झिमकिडीणं च थोवबहुत्तमेत्थमगुगंतव्व मिदि परूवेमाणो सुत्तमुत्तरं भणइ * हेट्ठा अणुदिरणाओ थोवाओ । $ १९ सुगमं । * उवरि अणुदिरणाओ विसेसाहियाओ । २० सुगम । [ चारितक्खवणा * तदनन्तर समय में वह क्षपक प्रथम समयवर्ती सूक्ष्मसाम्परायिक हो जाता है । $ १७ यह सूत्र सुगम है । * उस समय उसके सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टियोकां असंख्यात बहुभाग उदीर्ण होता है । $ १८ क्योंकि अधस्तन और उपरिम असंख्यातवें भागप्रमाण कृष्टियोंको छोड़कर मध्यम बहुभाग स्वरूपसे ही उसके उदय होनेका नियम देखा जाता है। इसलिये अधस्तन और उपरिम असंख्यातवें भागको विषय करनेवाली कृष्टियोंको छोड़कर शेष मध्यम बहुभागरूपसे सूक्ष्मकृष्टियों की पूर्वोक्त प्रदेशविन्यासवश उदीरणा करता हुआ यह प्रथम समयवर्ती सूक्ष्मसाम्परायिक हो जाता है । यह यहाँ इस सूत्रका मथितार्थ है । अब यहाँ अधस्तन और उपरिम अनुदीर्णं कृष्टियोंका और उदीर्ण हुईं मध्यम कृष्टियोंका अल्पबहुत्व जानने योग्य है, इसलिये उसकी प्ररूपणा करते हुए आगे सूत्रको कहते हैं * अधस्तन भागमें स्थित अनुदीर्ण कृष्टियां सबसे अन्प हैं । 8 १९ यह सूत्र सुगम है । * उपरिम भागमें स्थित अनुदीर्ण कृष्टियां विशेष अधिक हैं । २० यह सूत्र सुगम है ।
SR No.090228
Book TitleKasaypahudam Part 16
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages282
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size25 MB
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