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________________ ६ १५ एवमेसो पाए सुहुमसांपराइयकिट्ठीसु चेव णिरुद्धविदियसंगहकिट्टीए पदेसग्गमोकड्डणासंकमेण संछहमाणो ताव गच्छदि जाव अप्पणो पढमद्विदी आवलियपडिआवलियमेत्ता सेसा त्ति । पुणो तत्थागालपडिआगालवोच्छेदं काण पुणो वि समयणावलियमेत्तपढमद्विदिमधद्विदीए गालिय समयाहियमेत्तपढमट्टिदीए सह वट्टमाणो चरिमसमयवादरसांपराइयो जादो। संपहि तदत्थाए वट्टमाणस्स जो परूवणाविसेमो तण्णिद्देसकरणट्ठमुत्तरसुत्तावयारो * लोभस्स विदियकिटिं वेदयमाणस्स जा पढमहिदी तिस्से पढमहिदीए प्रावलियाए समयाहियाएसेसोए ताधे जा लोभस्स तदियकिही सा सव्वा हिरवयवा सुहुमसांपराइयकिट्टीसु संकता। जा विदियकिट्टी तिस्से दो श्रावलिया मोत्तृण समयूणे उदयावलिपविलु च सेसं सव्वं सुहमसांपराइयकिट्टीसु संकंतं । ताधे चरिमसमबवादरसांवराइनो मोहणीयस्स चरिमसमयबंधगो। $ १६ एदाणि सुत्ताणि सुगमाणि । एवमणियट्टिकरणद्धं समाणिय से काले पढमसमयसहुमसांपराइययभावेण परिणदस्स जो परूवणाविसेसो तण्णिण्णयकरणट्टमुवरिमो सुत्तपबंधो ६ १५ इस प्रकार यहाँसे लेकर सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टियोंमें ही विवक्षित दूसरी संग्रह कृष्टिका प्रदेशपुज अपकर्षण संक्रमणके द्वारा संक्रमित होता हुआ तब तक जाता है जब तक अपनी प्रथम स्थिति आवलि प्रत्यावलि प्रमाण शेष रहती है। पुनः वहाँ आगाल प्रत्यागालको व्युच्छित्ति करके फिर भी एक समय कम आवलिमात्र प्रथम स्थिति अधःस्थितिके द्वारा गलाकर एक समय अधिक प्रथम स्थितिके साथ विद्यमान वह जीव अन्तिम समयवर्ती बादरसाम्परायिक होता है, अब उस अवस्थामें विद्यमान जीवके जो प्ररूपणाविशेष है उसका निर्देश करनेके लिये आगेके सूत्रका अवतार करते हैं___* संज्वलन लोभकी दूसरी कृष्टिका वेदन करनेवालेके जो प्रथम स्थिति है उस प्रथम स्थितिमें एक समय अधिक आवलिप्रमाण कालके शेष रहने पर उस समय संज्वलन लोभकी जो तीसरी कृष्टि है वह सब पूरीकी पूरी सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टियोंमें संक्रमित हो जाती है । जो दूसरी कृष्टि है उसके एक समय कम दो आवलिप्रमाण नवकवन्ध और उदयावलि प्रविष्ट प्रदेशपुंजके छोड़कर शेष सब द्रव्य सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टियोंमें संक्रान्त होता है । उस समय यह क्षपक जीव अन्तिम समयवर्ती बादरसाम्परायिक और मोहनीय कर्मका अन्तिम समयवर्ती वन्धक होता है। $ १६ ये स्त्र सुगम हैं। इस प्रकार अनिवृत्तिकरणके कालको समाप्त करके तदनन्तर समयमें प्रथम समयवर्ती सूक्ष्मसाम्परायिकभावसे परिणत हुए इस क्षपकके जो प्ररूपणाविशेष है उसका निर्णय करनेके लिये आगे का सूत्रप्रबन्ध आया है
SR No.090228
Book TitleKasaypahudam Part 16
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages282
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size25 MB
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