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________________ ३० लोभ और पुरुषवेदसे क्षपकश्रेणिपर चढ़े हुए जीवका कथननिर्देश स्त्रीवेदसे क्षपकश्रेणिपर चढ़े हुए जीवका कथन निर्देश नपुंसक वेदकी पहले होती है इसका निर्देश अपगतवेदी जीव पुरुषवेद और छह नोकषायका क्षय करता है इसका निर्देश नपुंसकवेदसे क्षपकश्रेणिपर चढ़े हुए जीवका कथननिर्देश नपुंसक वेदका क्षय करनेपर सात कर्मोंका क्षय करता है इसका निर्देश अनन्तर क्षीणकषायी होकर स्थिति अनुभागका बन्ध नहीं करता इसका निर्देश वर्गणा खंडके अनुसार ईर्षापथकर्मके लक्षण करनेका कथन निर्देश पहले गुणस्थानों की अपेक्षा इसके गुणश्रेणिनिर्जरा असंख्यातगुणी होनेके कारणका निर्देश घातक क्षपणा सम्यक्त्वके समान होनेका निर्देश इसके घातकी उदीरणा कबतक होती है इसका निर्देश इसके शुक्लध्यानके प्रथम दो भेद क्रम से होते हैं इसका निर्देश यह जीव द्विचरम समय में निद्रा और प्रचलाका नाश करता है इसका निर्देश उसके बाद अन्तिम समयमें तीन घातिकर्मोंका नाश करनेका निर्देश क्षोणमोह से सम्बन्ध रखनेवाली २३२ संख्याक गाथाका निर्देश संग्रहणी मूलगाथा २३३ का कथननिर्देश उसके बाद यह जीव सयोगकेवली हो जाता है इसका निर्देश आगे केवलज्ञानादिके स्वरूपका विस्तारसे कथन करनेका निर्देश क्षपणाधिकार चूलिका इस अनुयोगद्वार में जिस क्रम से अनन्तानुबन्धी आदि कर्मोंका क्षय होता है इसका निर्देश मोहनीयकर्मकी आनुपूर्वीसे प्रक्रियाका निर्देश जीवके संक्रम किस विधिसे किसमें होता है इसका निर्देश अनुभाग में गुणश्रेणि किस विधि से होती है इसका निर्देश प्रदेश की अपेक्षा गुणश्रेणी किस विधिसे होती है इसका निर्देश इसके बन्ध और उदयके विषयमें बन्धका निर्देश बादरसाम्परायिक जीवके अन्तिम समयमें कितनी स्थितिके साथ कौन कर्म बंधता है इसका निर्देश कृष्टियोंके विषय में विशेष निर्देश तीन घातिकर्मोंका उदय कब तक होता है इसका निर्देश करनेवाली गाथा के साथ कषायप्राभृतकी समाप्तिका निर्देश आचार्य परम्पराका निर्देश करनेके साथ गाथासूत्रोंका पूरी तरह छद्यस्थ विवेचन नहीं कर सकता यह बतलाते हुए लघुताका प्रकाश करनेवाले वचन पच्छिमखंध -अत्थाहियार आचार्य भट्टारक वीरसेनकी महत्ता बतलानेवाला एक श्लोक पाँच परमेष्ठियोंकी उपासना करनेका निर्देश पश्चिमस्कन्ध अर्थाधिकार समस्त श्रुतस्कन्धका चूलिकारूपसे अवस्थित है इसका निर्देश पश्चिमस्कन्धका स्वरूप निर्देश १०८ ११२ ११३ ११४ ११५ ११८ ११९ १२१ १२१ १२२ १२३ १२३ १२४ १२५ १२६ १२८ १३० १३१ १३९ १४१ १४१ १४२ १४२ १४२ १४३ १४३ १४४ १४५ १४६ १४६ १४७ १४७
SR No.090228
Book TitleKasaypahudam Part 16
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages282
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size25 MB
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