SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 32
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कषायप्राभृतमें पश्चिमस्कन्धके कथनका प्रयोजन अन्तर्मुहूर्त आयुके शेष रहनेपर आवर्जितकरण करनेका निर्देश उस समय नाम, गोत्र और वेदनीयके प्रदेशपुंजके अपकर्षकी विधिका निर्देश आदि कथन समुद्धात क्रमके साथ उसमें होनेवाले कार्योंका निर्देश ३१ लोकपूरण समुद्धात के समय योगकी एक वर्गणा होकर समयोग होता है इसका निर्देश उस समय चार अघाति कर्मोकी स्थिति कितनी होती है इसका निर्देश उस समय अप्रशस्त कर्मोंके अनुभागकी अनुसमय अपवर्तना होनेका नियम स्थितिकाण्डकका नियम उतरनेवालेके चार समय किस विधिसे लगते हैं इसका निर्देश लोकपूरण समुद्धात बाद स्थितिकाण्डक और अनुभाग काण्डकका नियम तीनों योगोंके निरोध करनेकी विधिका निर्देश सूक्ष्म काययोगीके अपूर्वस्पर्धक करनेकी विधिका निर्देश कितने काल तक अपूर्वं स्पर्धक करता है इसका निर्देश उसके बाद योगकी कृष्टिकरण विधिका निर्देश यह करते हुए जीवप्रदेशोंका क्या होता है इसका निर्देश योगका निरोध होनेपर आयुकर्मके समान शेष कर्म हो जाते हैं इसका निर्देश तदनन्तर अयोगकेवली हो जाता है इसका निर्देश अयोगकेवलीके ध्यानका निर्देश केवलीके ध्यान उपचारसे कहा है इसका निर्देश इसके बाद सिद्ध होने का निर्देश अयोगकेवली द्विचरम समयमें ७२ प्रकृतियोंका और चरम समयमें १३ प्रकृतियोंके क्षय होने का निर्देश मोक्षपदार्थ की सिद्धि • सिद्ध होनेके बाद लोकाग्र में उनके अवस्थानका नियम परिशिष्ट १. [अ] मूलगाथा और चूर्णिसूत्र [ब] खवणाहिया रचूलिया [स] पच्छिमखंध-अत्याहियार २. अवतरणसूची ३. ऐतिहासिक नाम सूची ४. ग्रन्थ - नामोल्लेख ५. न्यायोक्ति ६. उपदेशभेद शुद्धिपत्र (१-१६ भाग १४८ १४९ १४९ १५१ १५७ १५७-५८ १५८ १५९ १६० १६१ १६२ १६६ १६८ १७१ १७६ १८२ १८२ १८४ १८४ १८५ १८६ १८७ १९० १९७ २०६ २०७ २०९ २११ २११ २११ २११ २१३-२४९
SR No.090228
Book TitleKasaypahudam Part 16
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages282
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy