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________________ पृष्ठ पंक्ति २ * ६ ३१ ३४ २३ ४१ १२ ४१ ३१ ४५ ६ ४५ २१ ४५ ३१ ४८ १५ ४८ ३२ ४८ ३२ ६३ १८ ७ १०-११ तेजोलेश्या के जघन्य अंश रूप ९ १० ९ १८ ११ २६ ३१ १५ अशुद्ध ७४ १६ १०२ ३७ १०३ ५ ११४ २१ १२३ १३ अनुभवा दर्शन मोननीय १३० २५ १३० ३३ १३६ २५ १४८ २५ मिध्यात्व का पूरा संक्रम जहाँ यह जीव सम्यग्मिथ्यात्व में जयधवला भाग १३ इत बन्ध तभी अन्तर से एक भाग प्रमाण है । ६३ ३० होन होता है । इस प्रकार इस क्रम को उपकर्षण कोटिपृथक्त्व सागरोपम प्रमाण संखेज्जे भागे सत्कर्म में से संख्यात बहुभाग को ૬૪ १९ प्रत्येक ६६ ३२ गुणश्रेणिशीर्ष के अघस्तन समय के ७२ २८ ओर प्रहण २०००० : ५= ४०००० द्वारा मिथ्यात्व के स्थिति काण्डक को अनन्तगुणाहीन है । इस प्रकार जब तक कि जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम एक जघन्य और उत्कृष्ट कारण परिणाम स्थितिबन्ध तथा संयत होता है। संख्यातभाग हानिरूप स्थितिकाण्डक का संयतासंयत के अप्रतिपात शुद्ध देखा दर्शन मोहनीय सम्यग्मिथ्यात्व का पूरा संक्रम जहाँ यह जीव सम्यक्त्व में जघन्य से तेजोलेश्यारूप इन बन्ध सभी अन्तर से संख्यात भाग प्रमाण है । उत्कृष्ट स्थिति सत्कर्म से उपस्थित जीव के सागरोपम - शतपृथक्त्व प्रमाण स्थितिकाण्डक होता है । उत्कर्षण कोटि लक्ष पृथक्त्व सागरोपम प्रमाण असंखेज्जे भागे सत्कर्म में से असंख्यात बहुभाग को ग्रहण २०००० ÷ ५ = ४००० द्वारा जब तक मिथ्यात्व के स्थिति काण्डक को नहीं प्राप्त होता अनन्तगुणाहीन है । इससे भी उदय समय में प्रवेश करने वाला अनुभाग अनन्तगुणाहीन है । इस प्रकार हीन होता है । इससे भी उदय समय में प्रवेश करने वाला अनुभाग अनन्तगुणाहीन है । इस प्रकार इस क्रम को प्रत्येक अघस्तन समय के गुणश्रेणिशीर्ष के अर्थात् जब तक कि स्थितिकाण्डक की जघन्य मो जघन्य एक पल्य और उत्कृष्ट करण परिणाम स्थितिबन्धापसरण तथा संयतासंयत होता है। संख्यात भागवृद्धिरूप स्थितिबन्ध का संयतासंयत के जघन्य अप्रतिपात
SR No.090228
Book TitleKasaypahudam Part 16
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages282
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size25 MB
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