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________________ शुद्धिपत्र ] पृष्ठ पंक्ति १७२ १३ १७२ ३१ १७३ ३५ सामायिक - छेदोपस्थापना शुद्धि संयत और आदर ब प्रतिबद्ध है । २२३ ३० २२३ ३० २२३ ३३ २२३ ३४ २३१ २१ २३४ २५ २३८ १६ अशुद्ध मायाकसाय० । तेउ० १९० २१ १९१ २८ २०३ ३१ २०५ २७ २०६ ३ २११ २९ संख्यातगुणहानि और अनन्त गुणा २१७ ३ शुविशुद्ध २२१ १८ तिर्यंचगति देवगति इन तीनों के २२१ १९-२१ कर्म की नरकगति.... साधारण प्रकृतियाँ तथा स्थितिकाण्डक का २४८ २३ २७६ १९ ३१७ २७ ३२० १८ जानना चाहिए । ३२० २२ ३२० ३३ ३३१ २४ अप्रस्त वहाँ से लेकर सत्याणे वह स्थितिकाण्डक जिस स्थितिकाण्डक का वह काण्डक भी अकर्षित मोहनीय कमों का ग्रहण किया स्थितिबन्धापरण असंख्य गुण स्थिति को एक समय आवली प्रमाण दो त्रिभाग प्रमाण कुछ कम दो भाग प्रमाण सर्वप्रथम प्रथम समय में इनका कदाचित् शुद्ध | एवं लोहकसाय० । णवरि सुहुम० मायाकसाय ० अत्थि । तेउ० जानना चाहिए । इसी प्रकार लोभकषाय में भी जानना चाहिए । किन्तु वहाँ पर सूक्ष्मसाम्पराय संयत भी होता है । सामायिक - छेदोपस्थापना शुद्धिसंयत परिहारविशुद्ध संयत और आदर न प्रतिबद्ध है । अप्रशस्त उसके बाद सत्थाणे संख्यात गुणाहीन और अनन्तगुणा हीन सुविशुद्ध तिर्यंचगति इन दोनों के कर्म तथा २३९ स्थिति समूह का वह स्थिति समूह जिस स्थिति समूह का वह स्थिति समूह भी अपकर्षित अन्तराय कर्मों का ग्रहण किया स्थितिबन्धापसरण असंख्यातगुणा हीन हो द्रव्य को एक आवली प्रमाण दूसरे भाग (12) प्रमाण कुछ कम अर्द्ध भाग प्रमाण प्रथम समय में इनका कदाचित् वेदक और कदाचित्
SR No.090228
Book TitleKasaypahudam Part 16
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages282
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size25 MB
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