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१३
३५
संख्यात हजार
३७
२६ संख्यात हजार
३८ १४ संख्यात हजार ५७
१८ गतियों में
२४
अशुद्ध
१० संखेज्जवारमुप्पज्जिय
ش
५७ २९ संख्यातबार
७७ ३
कसायोव
७७ २० और कषाय
८४ २४-२५ मानोपयोग काल में
१५८ ७ रुवेंतस्स १८६ २३ झंज्ञा १८६ २७ संज्ञा
१८९ २७ शास्वत २०७ १३ यह कर
थदि देव है तो
२२८ ३२ २६१ १४ - २० विशेषार्थं ....यहां पर ..... स्थितियों वाले बन जाते हैं । स्थितिकत्कर्म
जयधवला भाग १२
२९६ १९ ३१० १७-१८ मिथ्यात्व और सम्यर्गमथ्यात्व या तीनों कर्मप्रकृतियों
३२१
१७ सम्म दृष्टि
३२१ २९ षरमार्थं
३२२ ११ स्वीकार करता है
३२३
२६
अबस्था में
३०
शुद्ध
गतियों में
बहुत संख्यात
बहुत हजार
बहुत संख्यात असंखेज्जवारमुप्पज्जिय
असंख्यात बार
उक्कसकसायोव
और उत्कृष्ट कषाय
मायोपयोग काल में
पर्वतस्स
झंझा
झंझा
शाश्वत
यह
यदि देव है तो
X X X
स्थितिसत्कर्म
X X X
सम्यग्दृष्टि परमार्थ
स्वीकार नहीं करता है
अवस्था में
नोट :- इस उक्त जयधवला भाग “१२" में कुछ शुद्ध-अशुद्ध जवाहर लाल जी शास्त्री [भीण्डर ] के
भी निहित है ।