SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 265
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पृष्ठ पंक्ति अशुद्ध १८४ ३३ अनुभागविभक्ति के 33 १८५ २३ १८५ २६ अनुभाग विभक्तिसम्बन्धी १९३ २६ आनरत १९३ २८ १९५ १५ २०५ २६ २०८ २९ "} २१६ ३३ अनुदिशले २१६ ३३ लेकस्सर्वार्थसिद्धि मनुष्वों में सत्कर्भ के क्षपितकर्माशिक विधि से अंतिम समय में द्विचरम स्थिति काण्डक का २१७ १३ सम्यक्त्व के २१७ ३२ न्नौर २१८ २०-२१ उत्कृष्ट काल कुछ कम तेतीस सागर है । २१८ २७ इसी प्रबार २१८ ३२ सम्यक्त्व का मिथ्यात्व में रखकर २१९ १२ २१९ ३१ नोकबायों का २२० ३४ मय और २२१ ८ सम्यक्त्व २२१ १६ सन्यक्त्व २२१ २१ २२१ २५ पिशेष २२१ २८ १५ २२२ २२२ १७ २२२ ३१ २२४ २२ २२७ २७ सम्यग्मिथ्यात्व भोकषायों नारकी के प्रथम प्रवृत्तियों के जयधवला भाग ९ शुद्ध प्रदेशविभक्ति के समय एक समय कम जो सूत्रकार ने उत्कृष्ट अन्त जघन्य अन्तर काल २३४ १५ २३५ १६ १७ सन्यग्मिथ्यात्व २३५ २७ अन्तर कुछ कम तीन पूर्व २३७ ३२ अनन्तगुणाहीन २४० २३ असंख्यागुणे ३३१ १५ सव्वलहुं गंतुण ३३२ १५ जघन्य उद्वेलना " 11 प्रदेश विभक्तिसम्बन्धी आनत मनुष्यों में सत्कर्म के कर्माशिक विधि से द्विचरम स्थितिकाण्डक के अंतिम समय में अनुदिश से लेकर सर्वार्थसिद्धि सम्यक्त्व के और उत्कृष्ट काल एक समय है । का जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है कम तेतीस सागर है । इसी प्रकार सम्यक्त्व का X नोकषायों का भय और सम्यक्त्व सम्यक्त्व सम्यग्मिथ्यात्व विशेष नोकषायों देवों के प्रथम प्रकृतियों के समय कम जो चूर्णिसूत्रकार ने उत्कृष्ट अन्तर अन्तरकाल सम्यग्मिथ्यात्व अन्तर कुछ कम पूर्व असंख्यातगुणाहीन असंख्यात भाग सव्वलहु मिच्छत्तं गंतूण जघन्य काल द्वारा उद्वेलना अजघन्य प्रदेश संक्रामक और उत्कृष्ट काल कुछ
SR No.090228
Book TitleKasaypahudam Part 16
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages282
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy