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________________ शुद्धिपत्र ] पृष्ठ पंक्ति अशुद्ध ३४५ २८ कुछ कम तीन पल्य साधिक तीन पल्य ३५५ १६ और एक नाना और नाना २५८ २० संख्यात बहुभाग प्रमाण हैं । अवस्थित x और अवक्तव्य संक्रामक जीव ३५८ ३२ कितने हैं ? सोलह कितने हैं ? असंख्यात हैं। सोलह ३६० २ अवट्ठि० १ अक्त० ३६० १७ अवस्थित और अवक्तव्य संक्रामक अवक्तव्य संक्रामक और असंक्रामक जीवों ने जीवों ने ३६२ ३० सम्यग्मिथ्यात्व की सम्यक्त्व की ३६२ ३१ तथा ३६२ ३३ समान है । इसी प्रकार समान है । अनन्तानुबन्धी चतुष्क के भुजगार, अल्पतर और अवस्थित संक्रामकों का काल सर्वदा है । अवक्तव्य संक्रामकों का भंग मिथ्यात्व के समान है। इसी प्रकार ३६३ ३३ सम्यक्त्व सम्यक्त्व ३६५ १५ अल्पतर संक्रामक अवक्तव्य संक्रामक ४१५ २६ थोग के द्वारा योग के द्वारा ४२७ २१ विरोषाधिक का विशेषाधिक का ४५५ २४ फिर छासठ सागर फिर दो छ्यासठ सागर ४५५ ३१ अकर्षण अपकर्षण ४८१ २३ श्रेणि में सम्यक्त्व में ४८१ ३१ अस्पबहुत्व अल्पबहुत्व ४८२ २६ तसी के उत्कृष्ट उसी के उत्कृष्ट ४८२ ३१ सम्यस्त्व सम्यक्त्व ४८२ ३३ हीन हीता हीन होती ४८३ २५ जतिन्म अन्तिम ५०४ २२ असंख्यात लाक असंख्यात लोक शुद्ध जयधवला भाग १० पृष्ठ पंक्ति अशुद्ध ३१ ८ अणंताणु० ४ अणंताणु० क्रोध ३१ २७ अनन्तानुबन्धी चतुष्क, अनन्तानुबन्धी क्रोध, १०५ ३३ यार्गणातक मार्गणा तक
SR No.090228
Book TitleKasaypahudam Part 16
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages282
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size25 MB
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