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________________ जयधवला भाग ८ शुद्ध पृष्ठ पंक्ति अशुद्ध १. एक समय बाकी है ७२ २१ चाहिये । किन्तु इतनी एक समय अधिक उदयावली बाकी है चाहिये । दूसरी से सप्तम पृथ्वी तक भी इसी प्रकार जानना चाहिए । किन्तु इतनी तीसरा स्थान चौबीस प्रकृतियों सं० क्रोध और दो मान के बिना मं० मान और दो माया के बिना प्रतिग्रहस्थान मान संज्वलनरूप जीव ने क्रमशः तीन प्रकार के क्रोध तथा जो अन्तरकरण तक तथा मिश्रगुणस्थान में जानना परिमाणानुगम की होने पर पूरी आवली का ११२ २९ तीसरा स्थान इक्कीस प्रकृतियों १२३ १२ दो मान के बिना १२३ १३ दो माया के बिना १२६ १७ प्रतिग्रस्थान १३५ १९ मान संज्वलन का १३६ २३ जीव ने तीन प्रकार के क्रोध १३६ २५ क्योंकि जो १६५ २४ अन्तकरण १७८ २६ तक जानना २३३ १३ परिणामानुगम की २४५ ३० होने तक पूरी २५० २६ आवति का २५१ ३४ १५ -१ = १५ २५४ २० असंख्यतवा २५८ १७ स्थिति का २६४ ३२-३३ जघन्य स्थिति संक्रम अद्धाच्छेद होने के बाद २८४ १८ मोहनीय की स्थिति का ३३५ १३ उपार्धपुद्गल परिवर्तन ३४५ ३४ सम्पन्न भंग है। ३५० २१ विशेष अधिक ३५० २८ सिथ्यात्व का ३७१ २४ कुल विशेषता ३८३ ११ वस्ससहस्साणि ३८३ २८ हजार ३८६ ३० जीवराशि के संख्यातवें ४११ ३० सर्वार्थसिद्धि तक के ४२८ २३ है किन्तु इनमें असंख्यातवाँ अग्रस्थिति का असंक्रामक होकर मोहनीय की उत्कृष्ट स्थिति का कुछ कम दो छ्यासठ सागर समान भंग है। असंख्यातगुणी मिथ्यात्व का कुछ विशेषता वस्साणि जीवराशि के असंख्यातवें नववेयक तक के है कि इनमें
SR No.090228
Book TitleKasaypahudam Part 16
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages282
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size25 MB
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