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________________ अशुद्ध जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [जयधवला भाग ७ पृष्ठ पंक्ति २१६ १३ गुणहाणि० अणंतागु० गुणहाणि० [सम्मत्त-सम्मामि० अवत्त० असंखे० गुणवड्डि० असंखे० भागवड्डि] अणंताणु २१६ ३३ वाले और अनन्तानुबन्धी वाले सम्यक्त्व व सम्यग्मिथ्यात्व की अवक्तव्य, असंख्यातगुणवृद्धि, असंख्यातभागवृद्धि वाले और अनन्ता नुबन्धी २१७ १३ अवठि०-असंखे० अवट्ठि-संखे० २१७ ३५ असंख्यातगुणवृद्धि वाले संख्यातगुणवृद्धि वाले २१८ ४ सव्वपदा [सम्वदेव.] सव्वपदा २१८ १९ तिर्यञ्च और सब मनुष्यों में तिर्यञ्च, सब मनुष्य और सब देवों में २२१ २६ नपुंसकवेद की पुरुषवेद की २२६ १३ गुणवड्डि-हाणि० गुणहाणि २२६ ३४ असंख्यातगुणवृद्धि २३५ २९ 'झीमझीणं' 'झीणमझीणं' २५४ २८ नकक बंध को नवकबन्ध की २५६ २० ऊपर प्रथम स्थिति में ऊपर द्वितीय स्थिति में २८५ २८ आवली प्रमाण गोपुच्छा आवली-प्रमाण गुणश्रेणीरूप गोपुच्छा २९३ १४ अनन्तानुन्धी अनन्तानुबन्धी ३०१ १२ यकि यदि ३०१ १८ अम्तिम अन्तिम ३२३ २९ स्वामिस्व स्वामित्व ३४२ २६ काल लक काल तक ३५८ २२ उत्कृष्ट द्रव्य जघन्य द्रव्य ३६० १७ क्यों वैसा क्योंकि वैसा ३६७ ३१ अधःनिषेक स्थिति प्राप्त यथानिषेक-स्थिति प्राप्त ४०१ ३३ यथानिककाल यथानिषेक संचयकाल ४०१ ३४-३५ यथानिषेक काल यथानिषेक संचय काल ४०१ ३५ ॥ ४३० १७ जघन्य सत्कर्म के जघन्य स्थिति सत्कर्म के ४४० २८ उदयस्थिति प्राप्त अनन्तानुबन्धी के उदय स्थिति प्राप्त ४४२ २६ यथानिषेक-स्थिति प्राप्त बारह कषाय के यथानिषेक स्थिति प्राप्त
SR No.090228
Book TitleKasaypahudam Part 16
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages282
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size25 MB
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