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________________ hafoसमुग्धाद]] १५७ * लोगे पुणे एक्का वग्गणा जोगस्स त्ति समजोगो ति णायव्वो । ९ ३४२ लोगवरण - समुग्धादे वट्टमाणस्सेदस्स केवलिणो लोगमेत्तासेसजीवपदेसेसु जोगाविभागपरिच्छेदा वढि -हाणीहिं विणा सरिसा चैव होतॄण परिणमंति, तेण सव्वे जीवपदेसा अण्णोष्णं सरिसधणिय सरूवेण परिणदा संता एया वग्गणा जादा । तदो समजोगो ति एसो तदवत्थाए णायव्वो, जोगसत्तीए सव्वजीवपदेसेसु सरिसभावं मोत्तूण विसरिसभावाणुवलंभादो त्ति वृत्तं होइ । एसो च समजोगपरिणामो मणिगोदजहण्णवग्गणादो असंखेज्जगुणत्तप्पा ओग्गमज्झिमवग्गणासरूवेण होदित्ति णिच्छओ कायो । अपुन्वफद्दयविहाणादो पुव्वावत्थाए सव्वत्थमणुभागाणमसंखेज्जाणंते भागे घादेदि; तग्वादणमेव समुग्धादकिरियाए वावदत्तादोत्ति वृत्तं होइ । एवमेदम्मि लोग पूरणसमुग्धादे वट्टमाणेण द्विदीए असंखेज्जेसु मागेसु धादिदेसु घादिदसेसट्ठिदिसंतकम्मं सुड्डु थोवभावेण चिट्ठमाणमंतोमुडुत्तमेत्तायामं होण चिट्ठदि त्ति जाणावणमुत्तरमुत्तावयारो ! *लोगे पुराणे अंतो मुहुत्तं द्विदिं ठवेदि । ९ ३४३ सुगमं । संपहि किमेदमंतो मुहुत्तपमाणमाउट्ठिदीए समाणमाहो संखेज्जगुणमण्णारिसं वात्ति आसंकाए णिरागीकरणट्ठमिदमाह - * लोकपूरण समुद्धात में योगकी एक वर्गणा होती है, इसलिये वहाँ समयोग ऐसा जानना चाहिये । 8 ३४२ लोकपूरण समुद्धातमें विद्यमान इस केवली जिनके लोकप्रमाण समस्त जीवप्रदेशों में योगसम्बन्धी अविभागप्रतिच्छेद वृद्धि हानिके बिना सदृश ही होकर परिणमते हैं, इसलिये सभी जीवप्रदेश परस्पर सदृश धनरूपसे परिणत होकर एक वर्गणारूप हो जाते हैं । इसलिये यह केवली उस अवस्था में समयोग जानना चाहिये, क्योंकि समस्त जीवप्रदेशों में योगशक्तिके सदृशपनेको छोड़कर विसदृशपना नहीं उपलब्ध होता यह उक्त कथनका तात्पर्य है । और यह समयोगरूप परिणाम सूक्ष्म निगोदजोवकी (योगसंबन्धो) जघन्य वर्गणासे असंख्यात गुणत्वके योग्य मध्यम वगणारूपसे होता है ऐसा निश्चय करना चाहिये । अपूर्वं स्पर्धककी विधि से पहले की अवस्था में सर्वत्र अनुभागोंके असंख्यात और अनन्तबहुभागों का घात करता है, क्योंकि उसके घातकेलिये ही समुद्धात क्रियाका व्यापार होता है यह उक्त कथनका तात्पर्य है । इस प्रकार इस लोकपूरण समुद्धा में विद्यमान केवलो जिनद्वारा स्थितिके असंख्यात भागोंके घातित होनेपर घात होनेसे शेष रहा स्थितिसत्कर्म बहुत अल्परूपसे स्थित होकर अन्तर्मुहूर्तप्रमाण आयामवाला होकर स्थित रहता है इस बातका ज्ञान करानेकेलिये आगेके सूत्रका अवतार करते हैं * लोकपूरण समुद्धातमें कर्मोकी स्थितिको अन्तर्मुहूर्तप्रमाण स्थापित करता है । § ३४३ यह सूत्र सुगम है । अब क्या यह अन्तर्मुहूर्तप्रमाण स्थिति आयुकर्मको स्थिति समान है या संख्यातगुणी है या अन्य प्रकारकी है; इस आशंका के होनेपर निःशंक करनेकेलिये इस सूत्रको कहते हैं
SR No.090228
Book TitleKasaypahudam Part 16
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages282
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size25 MB
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