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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ पच्छिमखंध -अत्याहियार ओसरिदूण चिट्ठदित्ति दट्ठव्वं । पदेसग्गेण पुण तत्तो असंखेज्जगुणपदेसविण्णासोवलक्खियमेदमिदि वत्तं । कुदो एवं परिच्छिज्जदे ? एक्कारसगुण से ढिसरूवणिरूवयगाहात्तादो ।
$ ३३० तदो गुण-सेढिसीसयादो उवरिमाणंतरट्ठिदीए वि असंखेज्जगुणमेव णिसिंचदि । ततो उवरि सव्वत्थ विसेसहीणं णिक्खिवदि । एवमावज्जिदकरण कालव्यंतरे सव्वत्थ गुणसे ढिणिक्खेवो णायव्वो । एत्थ दिस्समागपरूवणा जाणिय णेदव्वा । किमेसो किरिया हिमुहसजोगिकेवलिस्स गुणसेढिणिक्खेवो सत्थाणसजोगिकेवलिस्सेव अट्ठायाम आहो गलिदसेसायामो ति? णिक्खेवकरणाए अवट्टिदायामो ति णिच्छयो काव्वो ।
९ ३३१ एतो पहुडि जाव सजोगिदुचरिमहिदिकंडय़चरिमफालि त्ति ताव एदम्मि विसये अवट्ठिदसरूवेणेदस्स गुणसेढिणिक्खेवायामस्स पत्तिनियमदंसणा दो । ण चेदमसिद्धं सुत्ताविरुद्धपरमगुरुसंपदायबलेण सुपरिणिच्छिदत्तादो । दमेत्थासंकणिज्जं, सत्थाणकेवलिणो किरिया हिमुहकेवलिणो च अवट्ठिदेगसरूवपरिणामत्ते संते कुदो
अवस्थित है ऐसा जानना चाहिये । परन्तु प्रदेशपुंजकी अपेक्षा उससे यह असंख्यातगुणे प्रदेश विन्यास - से उपलक्षित होता है ऐसा कहना चाहिये ।
शंका- यह कैसे जाना जाता ?
समाधान —यह ग्यारह गुणश्रेणियोंके स्वरूपका निरूपण करनेवाले गाथासूत्रसे जाना जाता है ।
९ ३३० उस गुणश्रेणिशीर्षसे उपरिम अनन्तर स्थिति में भी असंख्यातगुणे प्रदेशपुंजको ही सींचता है । उसके बाद ऊपर सर्वत्र विशेषहोन प्रदेशपुंजको हो निक्षिप्त करता है। इस प्रकार आवजित करणकालके भीतर सर्वत्र गुणश्रेणिनिक्षेप जानना चाहिये । यहाँ पर दृश्यमान प्ररूपणा जानकर ले जाना चाहिये ।
शंका - आवर्जित क्रियाके अभिमुख हुए सयोगीकेवलीके यह गुणश्रेणिनिक्षेप स्वस्थान सयोगिकेवलीके समान अवस्थित आयामवाला होता है या गलितशेष आयामवाला होता है ?
समाधान - निक्षेपरूप करनेकी क्रियामें यह अवस्थित आयामवाला होता है, ऐसा निश्चय करना चाहिये ।
§ ३३१ इससे आगे सयोगीकेवलीके द्विचरम स्थितिकाण्डकी अन्तिम फालिके प्राप्त होने तक इस विषय में अवस्थित रूपसे इस गुणश्रेणिनिक्षेप सम्बन्धो आयामको प्रकृतिका नियम देखा जाता है । और यह असिद्ध नहीं है, क्योंकि यह सूत्र से अविरुद्ध परम गुरुओंके सम्प्रदायके बलसे सुनिश्चित होता है ।