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________________ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ चारित्तक्खवणा ___* जम्महंती इत्यिवेदेण उवट्ठिदस्स इत्थीवेदस्स पढमहिदी तम्महंती णवुसयवेदेश उवढिदस्स पसयवेदस्स पढमहिदी । २८० इत्थीवेदोदयक्खवगस्स इत्थीवेदपढमद्विदीए सह णवुसयवेदोदयक्खवगस्स णव सयवेदपढमट्ठिदी सरिसपमाणा चेव होदि, णाण्णारिसि त्ति वुत्तं होइ । संपहि एदिस्से पढमद्विदीए अभंतरे णवंसयवेदमित्थीवेदं. च खवेमाणो किमकमेण खवेदि, आहो कमेणेत्ति आसंकाए णिरारेगीकरणद्वमुवरिमो सुत्तपबंधो-- * तदो अंतरदुसमयकदे णवु सयवेदं खवेदुमाढत्तो । ६ २८१ सुगमं । * जद्देही पुरिसवेदेण उवष्टिदस्स गवुसयवेदस्स खवणद्धा तहेही णवंसयवेदेष उवट्ठिदस्स णवुसयवेदस्स खवणद्धा गदा; ण ताव णवंसयवेदो खीयदि। २८२ पुरिसवेदोदयक्ख वगस्स णवु सयवेदक्खवणद्धामेत्ते काले गदे वि एदस्स णवुसयवेदोदयक्खवगस्स णसयवेदो ण ताव खीयदि, अप्पणो पढमट्ठिदीए * स्त्रीवेदके उदयसे क्षपककश्रेणिपर चढ़े हुए क्षपकको स्त्रीवेदकी जितनी बड़ी प्रथम स्थिति होती है; नपुंसकवेदके उदयसे क्षपकोणिपर चढ़े हुए क्षपकके नपुंसकवेदकी उतनी बड़ी प्रथम स्थिति होती है। ६२८० स्त्रीवेदके उदयसे क्षपकश्रेणिपर चढ़े हुए क्षपकके स्त्रीवेदकी प्रथम स्थितिके साथ नपुंसकवेदके उदयसे क्षपक श्रेणिपर चढ़े हुए क्षपकके नपुसकवेदकी प्रथम स्थिति सदृश प्रमाणवाली ही होती है, अन्य प्रकारकी नहीं; यह उक्त कथनका तात्पर्य है। अब इस प्रथमस्थितिके भीतर नपुसकवेद और स्त्रीवेदका क्षय करनेवाला क्या अक्रमसे क्षय करता है या क्या क्रमसे क्षय करता है ? ऐसो आशंका होनेपर निःशंक करनेकेलिये आगेका सूत्रप्रबन्ध आया है * तदनन्तर अन्तर करनेके दूसरे समयमें नपुंसकवेदका क्षय करनेकेलिये आरम्भ करता है। ६ २८१ यह सूत्र सुगम है। * पुरुषबेदके उदयसे भपकोणिपर चढनेवाले क्षपकके नपुंसकवेदका क्षपणाकाल जितना बड़ा होता है, नपुंसकवेदके उदयसे लपक भोणिपर चढ़नेवाले क्षपकके नपुसकवेदका उतना बड़ा क्षपणाकाल व्यतीत हो जाता है तो मी नपुंसकवेदका क्षय नहीं होता है। ६ २८२ पुरुषवेदके उदयसे क्षपक श्रेणिपर चढ़े हुए क्षपकके नपुंसकवेदके क्षपणाकालमात्रकालके वोत जानेपर भो इस नपुंसकवेदके उदयसे क्षपकश्रेणिपर चढ़नेवाले क्षपकके नपुंसक
SR No.090228
Book TitleKasaypahudam Part 16
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages282
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size25 MB
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