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________________ गा० २३१ ] मेत्थ णाणत्तं सुत्तणिद्दिट्ठभवहारेयव्वं । कुदो एवमिदि चे ? णिरुद्धवेदसंजलणाणमण्णा वेदगभावाणुववत्तदो । संपहि एसा माणसंजलणपढमट्ठिदी किंपमाणा होदि, किं कोहसंजलणपढमट्ठिदीए सरिसा अहियूणा वा त्ति आसंकाए णिण्णयविहाणट्ठमुवरिमं पबंधमाह- १०१ * सा केम्महंती । $ २४४ सा माणसंजलणपढमट्ठिदी 'केम्महंती', कियन्महती, किं प्रमाणेति ? प्रश्नः कृतो भवति । अत्रोत्तरमाह * जड़ेही कोहेण उवट्ठिदस्स कोहस्स पढमट्ठिदी कोहस्स चेव खवणद्धा तद्देही चैव एम्महंती' माणेण उवट्ठिदस्स माणस्स पढमट्टिदी | $ २४५ जदेही जत्तियमेत्ती कोहोदएण चढिदस्स खवगस्स कोइस्स पढमट्ठिदी किट्टीकरणद्धा पज्जता पुणो कोहम्स चेन तिण्ड मंगदकिट्टीणं खवणद्धा च तद्देही तप्पमाणा चेव माणोदयक्खवगस्स माणसंजलणपढमट्ठिदी दट्ठव्वा । एम्महंतीए पढम स्थापित करता है । परन्तु यह क्षपक अर्थात् मानसंज्वलन के उदयके साथ क्षपकश्रेणिपर चढ़नेवाला क्षपक पुरुषवेदके साथ मानसंज्वलनको प्रथम स्थिति स्थापित करता है, इस प्रकार यह भेद यहाँ पर सूत्र में कहा गया जानना चाहिये । शंका- इस प्रकार किस कारण से है ? समाधान - पुरुषवेदके साथ विवक्षित संज्वलनका अन्यथा वेदकपना नहीं बन सकता है । अब मानसं ज्वलनकी प्रथम स्थिति कितनी बड़ी होती है, क्या क्रोधसंज्वलनको प्रथम स्थिति के समान होती है या अधिक होती है या कम होती है ? ऐसी आशंकायें होनेपर निर्णय करनेकेलिये आगे के प्रबन्धको कहते हैं * वह कितनी बड़ी होती है ? $ २४४ वह मानसंज्वलनकी प्रथम स्थिति 'के महंती' कितनी बड़ी अर्थात् कितनी प्रमाण वाली होती है ? इस प्रकार यह प्रश्न किया गया है । अब यहाँपर इस प्रश्नका उत्तर कहते हैं* क्रोधसंज्वलनसे क्षपकश्रेणि पर चढ़े हुए जीवकी क्रोधसंज्वलनकी जिस प्रमाण में प्रथम स्थिति होती है और जितने प्रमाणमें क्रोधसंज्वलनका क्षपणाकाल है, मानसंज्वलनसे क्षपक श्रेणिपर चढ़े हुए जीवके तत्प्रमाण में मानसंज्वलनकी प्रथम स्थिति होती है । $ २४५ क्रोधसंज्वलनके उदयसे क्षपकश्रेणिपर चढ़े हुए जीवके क्रोधसंज्वलनकी कृष्टिकरणपर्यन्त तथा क्रोधसंज्वलनसम्बन्धी तीन संग्रह कृष्टियोंका क्षपणाकाल है 'तद्देही' तत्प्रमाण हो मान १. एवं महंती आ० ।
SR No.090228
Book TitleKasaypahudam Part 16
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages282
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size25 MB
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