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________________ ७५ गा० २२४ ] मुदीरणमाढविय पवेसेमाणो जं पदेसग्गमुदीरणासरूवेण समयं पडि पवेसेदि तं पेक्खियण जं द्विदिक्खयेणुदयं पविसदि गुणसेढिसरूवेण रचिददव्वं तं णियमा असंखेज्जगुणमेव दट्टव्वं, गुणसेढिमाहप्पेण तत्थ तहाभावसिद्धीए णिप्पडिबंधमुवलंभादो ति । संपहि इममेव अत्थविसेसं फुडीकरेमाणो विहासागंथमुवरिममाढवेइ । * विहासा। ७ १८१ सुगमं । * जत्तो पाए असंखेज्जाणं समयपबद्धाणमुदीरगो तत्तो पाए जमुदीरिज्जदि पदेसग्गं तं थोवं । ६ १८२ सुगमं । 8 जमघटिदिगं पविसदि तमसंखेज्जगुणं । ६ १८३ गयत्थमेदं पि सुत्तं । संपहि ण केवलमेदम्मियेव विसये उदीरिजमाणदव्वादो अधढिदिगलणेण उदयं पविसमाणदबमसंखेज्जगुणं; किंतु हेट्ठा वि सव्वत्थ असंखेज्जलोगपडिभागेणुदीरिज्जमाणदव्वं पेक्खियण कम्मोदयेण पविसमाणगुणसेढिकरने पर अधिक होता है यह उक्त कथनका तात्पर्य है। इसका भावार्थ-अन्तरकरण प्रारम्भ करनेके पूर्व ही असंख्यात समयप्रबद्धोंकी उदीरणाका आरम्भ करके प्रवेश कराने वाला जिस प्रदेशपुजको उदीरणारूपसे प्रत्येक समयमें उदयमें प्रवेश करता है उसे देखते हुए जो कर्मपुंज स्थितिक्षयसे गुणश्रेणिस्वरूपसे रचा गया द्रव्य उदयमें प्रविष्ट होता है उसे नियमसे असंख्यातगुणा ही जानना चाहिये, क्योंकि गुणश्रेणिके माहात्म्यवश उसके उस प्रकारसे सिद्ध होनेमें कोई प्रतिबन्ध नहीं उपलब्ध होता। अब इसी अर्थविशेषको स्पष्ट करते हुये आगेके विभाषाग्रन्थको आरम्भ करते हैं * अब उक्त भाष्यगाथा की विमाषा की जाती है। ६ १८१ यह सूत्र सुगम है। * जिस स्थान से असंख्यात समयप्रबद्धों का उदीरक होता है उस स्थानसे लेकर जिस प्रवेशपुज की उदीरणा करता है वह प्रदेशज थोड़ा होता है। ६ १८२ यह सूत्र सुगम है। * उससे जो अधःस्थिति को प्राप्त होकर उदयमें प्रवेश करता है वह असंख्यातगुणा होता है। ६१८३ यह सूत्र भी गतार्थ है। अब इसो स्थानमें उदोरित होनेवाले द्रव्यसे अधःस्थितिगणनाकेद्वारा उदयमें प्रवेश करने वाला द्रव्य मात्र असंख्यातगुणा नहीं होता है, किन्तु इसके पूर्व भी सर्वत्र असंख्यात लोकप्रमाण प्रतिभागके अनुसार उदीरणाको प्राप्त होनेवाले द्रव्यको देख - १. कमेण आ० । २. मेदम्मि विसये आ०।
SR No.090228
Book TitleKasaypahudam Part 16
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages282
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size25 MB
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