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________________ ७४ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [चरित्तक्खवणा ६१७८ संपहि जहावसरपत्ताए छटुभासगाहाए' अत्थविहासणमिदमाह* एत्तो छट्ठी भासगाहा । ६ १७९ सुगमं । ॐ (१७१) जो कम्मंसो पविसदि पोगसा तेण णियमसा अहियो । पविसदि ठिदिक्खएण दु गुणेण गणणादियंतेण ॥ २२४ ॥ १८० एसा छट्ठभासगाहा एदस्स किट्टीवेदगखवगस्स पदेसुदीरणादो पदेसोदयस्स असंखेज्जगुणत्तं णियमपदुप्पायणट्ठमोइण्णा । तं जहा—'जो कम्मंसो पविसदि' जं खलु कम्मपदेसग्गमुदयं पविसदि । कधं पविमदि त्ति वुत्ते ‘पयोगसा' पओगवसेण परिणामविसेसकारणेणुदीरिज्जदि त्ति वुत्तं होइ। 'तेण णियमसा अधिगो' तत्तो णिच्छयेणेव बहुवयरो होदि। को सो पविसदि ? द्विदिक्खयेण दु' डिदिक्खएण कम्मोदयेण पविसमाणो पदेसपिंडो त्ति भणिदं होदि । सो वण केण' गुणगारेण अहिओ त्ति पुच्छिदे 'गुणेण गणणादियतेण' असंखेज्जगुणब्भहिओ होदि त्ति वुत्तं होदि । एदस्स भावत्थो-अंतरकरणादो हेट्ठा चेव असंखेज्जाणं समयपवद्धाण ६ १७८ अब यथावसर प्राप्त छठी भाष्यगाथाके अर्थकी विभाषा करनेके लिये यह सूत्र कहते हैं * इससे आगे छठी भाष्यगाथा है । ६ १७९ यह सूत्र सुगम है। * १७९ जो कर्मपुंज प्रयोगवश उदीरणाद्वारा उदयमें प्रविष्ट होता है उससे स्थितिक्षयद्वारा उदयमें प्रविष्ट होनेवाला कर्मपुज नियमसे असंख्यातगुणा होता है ।। २२४ ॥ ६ १८० यह छठी भाष्यगाथा, इस कृष्टिवेदक क्षपकके प्रदेशों को उदीरणासे प्रदेशोंका उदय असंख्यातगुणा होता है, इस नियमके प्रतिपादनके लिये अवतीर्ण हुई है। वह जैसे-~~'जो कम्मंसो पविसदि, जो कर्मप्रदेशपुंज नियमसे उदयमें प्रवेश करता है । कैसे प्रवेश करता है ? ऐसा कहने पर 'पओगसा' प्रयोगवश अर्थात् परिणामविशेषके कारणसे उदीरित होता है यह उक्त कथन का तात्पर्य है । 'तेण णियमसा अधिगो' उसको अपेक्षा निश्चयसे हो अधिकतर होता है। शका--वह कौन प्रवेश करता है जो अधिकतर होता है ? समाधान--'टिदिक्खयेण दु' जो स्थिति-क्षयसे अर्थात् कर्मके उदयसे प्रविष्ट होने वाला प्रदेशपिण्ड है वह अधिक होता है। शंका--परन्तु वह किस गुणकार से गुणा करने पर अधिक होता है ? समाधान-ऐसा पूछने पर कहते हैं-'गुणेण गणणादियंतेण' अर्थात् असंख्यातसे गुणा १. छहभासगाहाए आ० ।
SR No.090228
Book TitleKasaypahudam Part 16
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages282
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size25 MB
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