________________
खवगसेढोए विदियमूलगाहाए पढमभासगाहा सरिसधणियपरमाणुसमहारद्धाए परमाणुं पडि अणंताणमविभागपडिच्छेदाणमुवलंभादो। तदो जहणिया वि किट्टी अविभागपडिच्छेदगणणं पेविखयूण अणंतसंखावच्छिण्णाणुभागविसेसमवट्टिदा। एवं सेसाओ वि किट्टोओ टुब्बाओ ति गाहापच्छ द्वे सुत्तत्यसमुच्चओ। संपहि एवं. विहमेदिस्से गाहाए अत्थं विहासेमाणो चुण्णिसुत्तयारो विहासागंथमुवरिमं भणइ
* विहासा। 5 १३१. सुगमं ।
* कोधस्स पढमस गहकिट्टि वेदेंतस्स तिम्से संगहकिट्टीए एक्केका किट्टी विदियहिदीसु सव्वासु पढमहिदीसु च उदयवजासु एककेक्का किट्टी सबासु द्विदीसु ।
६ १७२. एवस्स सुत्तस्सत्यो वुच्चदे । तं जहा-कोहपढमसंगहकिट्टि वेवमाणस्स तववत्याए कोहसंजलणस्स पढम-विदियट्रिदिभेदेण दो दिदीओ भवंति । तत्थ ताव विदियट्रिनीए सम्बासु अवयवट्टिदोसु तिस्से वेदिज्जमाणकोहपढमसंगहकिट्टीए एक्केक्का अवयवकिट्टो अविसेसेण दीसइ, तत्थ तदवट्ठाणस्स पडिसे हाभावादो। पढमट्टिदीए पुण उदयवज्जासु सव्वासु दिसु निस्से संगहकिट्टीए एक्केक्का अवंतर'कट्टी समुवलब्भदे । एत्थ एक्केक्का किट्टो' त्ति भणिरे कोहसंजलगस्स जहणिया किट्टी एदास णिरुद्धठिदीसु भवदि। एवं विदिय किट्टो तवियकिट्टी च बाब एटमसंहकिट्टीए चरिमकिट्टि ति एदाओ सव्वाओ किट्टीओ पादेक्कं तत्थ समुवलब्भंति ति वुत्तं होइ।
क्योंकि मदश धनवाले परमाणुसमूहसे निष्पन्न हुई एक-एक कृष्टिके प्रत्येक परमाणुके प्रति अनन्त अविभागप्रतिच्छेद उपलब्ध होते हैं, इसलिए जघन्य भी कृष्टि अविभागप्रतिच्छेदोंको गणनाको देखते हुए अनन्त संख्यासे युक्त अनुभाग विशेषरूपसे अवस्थित है। इसी प्रकार शेष कृष्टियोंके विषयमें भी जानना चाहिए। इस प्रकार यह गाथाके उत्तरार्धका समुच्चयरूप अर्थ है। अब इस गाथाके इस प्रकारके अर्थको विभाषा करते हुए चूर्णिसूत्रकार आगेके विभाषा ग्रन्थको कहते हैं
अब इस भाष्यगाथाकी विभाषा करते हैं। ६१७१. यह सूत्र सुगम है।
* क्रोध संज्वलनको प्रथम संग्रह कृष्टिका वेदन करनेवाले जीवके उस संग्रह कृष्टिको एक-एक अवयव कृष्टि सब द्वितीय स्थितियोंमें और उदय रहित प्रथम स्थितियों में इस प्रकार एक-एक अवयव कृष्टि सब स्थितियोंमें अवस्थित रहती है।
६ १७२. अब इस सूत्रका अर्थ कहते हैं। वह जैसे-क्रोधसंज्वलनको प्रयम संग्रह कृष्टिका वेदन करनेवाले जीवके उस अवस्थामें क्रोध संज्वलनकी प्रथम और द्वितीय स्थितिके भेदसे दो स्थितियां होती हैं। उनमें से सर्वप्रथम द्वितीय स्थिति की सब अवयव स्थितियों में उम वेद्यमान क्रोधसंज्वलनको प्रथम संग्रह कृष्टिकी एक-एक अवयव कृष्टि अविशेषरूपसे दिखाई देती है, क्योंकि उन स्थितियोंमें उनके अवस्थानका निषेध नहीं है। परन्तु प्रथम स्थितिकी उदयरहित सब स्थितियोंमें उस संग्रह कृष्टिको एक-एक अवयव कृष्टि उपलब्ध होती है। यहाँपर 'एक्केक्का किट्टी' ऐसा कहनेपर क्रोध संज्वलनको जघन्य अवयव कृष्टि इन विवक्षित स्थितियों में पायी जाती है। इसी प्रकार दूसरी अवयव कृष्टि और तीसरी अवयव कृष्टिसे लेकर प्रथम संग्रह कृष्टि की अन्तिम अवयव कृष्टि तक जानना चाहिए। ये सब कृष्टियां अलग-अलग उन स्थितियोंमें उपलब्ध होती हैं