SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 95
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे * एवं किट्टीसु थोवो अणुभागो। $ १६१. सुगमं । * किसं कम्मं कदं जम्हा तम्हा किट्टी । ६१६२. जम्हा संजलणाणमणुभागसंतकम्नं कितं थोवयरं कदं तम्हा एदस्ताणुभागस्स किट्टीसण्णा जादा ति भणिदं होइ। 'कृश तनूकरणे' इत्यस्य धातोः कृशिशमस्थ व्युत्पत्त्थवलम्बनात्। * एदं लक्ख णं । ६१६३. एदमणंतरपरूविदं किट्टीणं लक्खणमिदि वुतं होइ । एवं पढममूलगाहाए तिण्हं भासगाहाणमत्थविहासा समत्ता। * एत्तो विदियमूलगाहा। 5 १६४. पढममूलगाहाए विहासिप समत्ताए तदणंतरमेत्तो विदियमूलगाहा विहासियव्वा त्ति वुत्तं होदि। * तं जहा । $ १६५. सुगमं । (११३) कदिसु च अणुभागेसु च हिदीसु वा केत्तियासु का किट्टी । सवासु वा द्विदीसु च आहो सव्वासु पत्तेयं ॥१६६।। * इस प्रकार कृष्टियोंमें अनुभाग सबसे अल्प होता है। 5 १६१. यह सूत्र सुगम है। * यतः संज्वलन कर्म अनुभागको अपेक्षा कृश किया गया है अतः उसका नाम कृष्टि है। ६१६२. यतः चारों संज्वलनोंका अनुभागसत्कर्म कृश अर्थ सबसे अल्प किया गया है इसलिए इस अनुभागको कृष्टि संज्ञा हो गयी है यह उक्त कथनका तात्पर्य है कृशधातु सूक्ष्म करने रूप अर्थमें आयी है। इस प्रकार इस धातुसे व्युत्पादित कृश शब्दका अवलम्बन लेकर कृष्टि शब्द निष्पन्न किया गया है। * यह कृष्टिका लक्षण है। 5 १६३. यह अनन्तर पूर्व कहा गया कृष्टियोंका लक्षण है. यह उक्त कथनका तात्पर्य है। इस प्रकार प्रथम मूलगाथासम्बन्धो तीन भाष्यगाथाओंके अर्थों की विभाषा समाप्त हुई। * इससे आगे दूसरी मूल गाथाको विभाषा को जाती है । 5 १६४. प्रथम मूल गाथाकी विभाषा समाप्त होनेपर तदनन्तर दूसरी मूलगाथाको विभाषा करनी चाहिए यह उक्त कथनका तात्पर्य है। ॐ वह जैसे। 5 १६५. यह सूत्र सुगम है। * ११३. कितने अनुभागोंमें और कितनी स्थितियोंमें कौन कृष्टि अवस्थित है। क्या सब स्थितियोंमें सब कृष्टियां सम्भव हैं या सब स्थितियोंमेंसे प्रत्येक स्थितिपर एक-एक कृष्टि सम्भव है ॥१६॥
SR No.090227
Book TitleKasaypahudam Part 15
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages390
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size38 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy