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________________ खवगसेढीए पढममूलगाहाए पढमभासगाहा * 'एकेक म्हि कसाये तिष्णि तिष्णि संगहकिट्टीओ' त्ति एवं तिग तिग । $ १४३. जदो एक्केक्कम्हि कसायम्हि तिष्णि तिष्णि संगह किट्टीओ होंति तवो 'एक्क्कम्हि कसाए तिग तिग' इदि गाहापच्छद्धे भणिदमिदि वृत्तं होदि । * एक्के किस्से संगह किट्टीए अनंताओ किट्टीओ त्ति एदेण 'अधवा अनंताओ' जादा । ५३ $ १४४. एक्केक्कस्स कसायरस एक्के विकस्से संगहकिट्टीए अवयवकिट्टीओ अनंताओ अस्थि, तदो 'अधवा अणंताओ' त्ति गाहासुत्तचरिमावयवो भणिदो त्ति वृत्तं होइ । णेदमेत्थासंकणिज्जं, 'अथवा अनंताओ' त्ति गाहापुग्वद्धचरिमावयवेणेवस्स सुत्तावयवस्त पुणरुत्तभावो किष्ण पसज्जदिति । कि कारणं ? अव्वोगाढसहवच दुकसायविसयेण तेण निरुद्वेगकसायविसयस्सेक्स्स अत्यभेवसंभवेण पुणरुत्तदोसा संभवादो । संपति 'किट्टीए कि करणं' ति मूलगाहातवियावयवस्स अत्थविवरणं कुणमाणो तत्थ पडिबद्धविदियभासगाहाए अवसरकरणट्टमुवरिमं पबंधमाह * एक-एक कषाय में तीन-तोन संग्रह कृष्टियाँ होती हैं इस प्रकार भाष्यगाथाके उत्तराधंमें 'तिगतिग' यह वचन आया है। $ १४३. यतः एक-एक कषायमें तीन-तीन संग्रह कृष्टियों होती हैं, इसलिए एक-एक कषाय में 'तिगतिग' यह वचन गाथाके उत्तरार्ध में कहा है यह उक्त वचनका तात्पर्य है । * एक-एक संग्रह कृष्टिकी अनन्त अवयव कृष्टियाँ होती हैं इस कारण उक्त भाष्यगाथा के उत्तरार्ध में 'अधवा अणंताओ' यह पद निर्दिष्ट किया गया है । १४४. एक-एक कषायकी एक-एक कारण 'अधवा अनंताओ' इस प्रकार उक्त कथनका तात्पर्य है | संग्रह कृष्टिकी अवयव कृष्टियां अनन्त होती हैं, इस भाष्यगाथा सूत्रका अन्तिम पाद कहा है यह उक्त शंका- इसी भाष्यगाथा के पूर्वार्धके अन्तिम पादमें 'अध व अणंताओ' यह वचन आया है, अतः उसके साथ उत्तरार्ध के 'अधवा अनंता' इस सूत्रवचनका पुनरुवतपना क्यों नहीं प्राप्त होता है अर्थात् अवश्य प्राप्त होता है ? समाधान - सो यहाँ ऐसी आशंका नहीं करनी चाहिए, क्योंकि इसी भाष्यगाथा के पूर्वार्धमें जो 'अध व अनंताओ' पाठ आया है वह अव्वोगाढरूपसे चारों कषायों को विषय करता है, इसलिए विवक्षित एक-एक कषायका विषय करनेवाले उत्तरार्ध सम्बन्धो 'अधवा अणताओ' इस वचनमें अर्थभेद सम्भव होने से पुनरुक्त दोष सम्भव नहीं है । विशेषार्थ - उक्त भाष्यगाथाके पूर्वार्ध में जो 'अघ व अनंताओ' पाठ आया है वह चारों कषायों में सब मिलाकर अवयव कृष्टियां अनन्त होती हैं इसकी सिद्धि के लिए आया है और इसी भाष्यगाथा के उत्तरार्धमें पुनः जो 'अधवा अणंताओ' पाठ आया है वह एक-एक कषायमें भी अनन्त-अनन्त अवयव कृष्टियां होती हैं यह द्योतित करनेके लिए आया है, इसलिए उक्त भाष्यगाथामें उक्त वचन आनेसे पुनरुक्त दोष नहीं प्राप्त होता यह उक्त कथनका तात्पर्य है । अब 'किट्टीए कि करणं' इस प्रकार मूलगाथाके तीसरे पादके अर्थका खुलासा करते हुए उक्त पादमें निबद्ध दूसरी भाष्यगाथाको अवसर देनेके लिए आगे के प्रबन्धको कहते हैं
SR No.090227
Book TitleKasaypahudam Part 15
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages390
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size38 MB
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