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खवगसेढीए पढममूलगाहाए पढमभासगाहा $ १३४. कोहोदएण जइ खवगसेढिमुदट्टायदि तो तस्स बारह संगहकिट्टीओ होति त्ति सुत्तत्थसंबंधो । सेसे सुगमं ।
* माणेण उवद्विदस्स णव संगहकिट्टीओ।
६ १६५. कुदो ? कोहसंजलणस्स तिहं संगहकिट्टीणमेत्य संभवाणुवलंभादो। कुवो एवं चे ? कोहसंजलणाणुभागस्स फद्दयसरूवेणेव तत्थ विणासदसणादो।
* मायाए उवट्ठिदस्स छ संगहकिट्टीओ।
६१३६. कोह-माणसंजलणाणं तत्थ किट्टीपरिणामेण विणा फद्दयसरूवेणेव विणासदसणादो।
* लोभेण उवढिदस्स तिणि संगहकिट्टीओ।
६१३७. कि कारणं ? लोभसंजलणं मोत्तूण तत्थ सेससंजलणाणं किट्टीकरणद्धो हेट्ठा चेव जहाकम फद्दयगदाणुभागसरूवेण खविज्जमाणाणं किट्टिसंबंधाणुवलंभावो। संपहि इममेव सुत्तत्थमुवसंहरेमाणो उवरिमं सुत्तावयवमाह
* एवं बारस णव छ तिण्णि च ।
5 १३४. यदि क्रोध संज्वलनके उदयसे क्षपकश्रेणिपर उपस्थित होता है तो उसके बारह संग्रह कृष्टियां होती हैं यह इस सूत्रका अर्थके साथ सम्बन्ध है । शेष कथन सुगम है।
के मान संज्वलनके उदयसे क्षपकश्रेणिपर उपस्थित हुए जीवके नौ संग्रह कृष्टियाँ होती हैं।
$ १३५. क्योंकि क्रोध संज्वलनसम्बन्धी तीन संग्रह कृष्टियां यहाँपर सम्भव नहीं हैं। शंका-ऐसा किस कारणसे है ?
समाधान-क्योंकि क्रोध संज्वलन सम्बन्धी अनुभागका यहां पर स्सर्धकरूपसे हो विनाश देखा जाता है।
* माया संज्वलनके उदयसे क्षपकणिपर उपस्थित हुए जीवके छह संग्रह कृष्टियां होती हैं।
६१३६. क्योंकि क्रोध और मान संज्वलनोंका वहाँपर कृष्टिरूप परिणाम हुए बिना स्पर्धकरूपसे ही विनाश देखा जाता है।
___ * लोभ संज्वलनके उदयसे क्षपकश्रेणिपर उपस्थित हुए जीवके तीन संग्रह कृष्टियाँ होती हैं।
६१३७. क्योंकि लोभसंज्वलनको छोड़कर वहाँपर शेष संज्वलनोंका कृष्टिकरणके कालके पूर्व ही क्रमसे स्पर्धकगत अनुभागरूपसे क्षय करनेवाले जीवोंके कृष्टिरूपसे उक्त अनुभागका सम्बन्ध नहीं पाया जाता। अब सूत्रसम्बन्धी इसी अर्थका उपसंहार करते हुए आगे उक्त गाथा सूत्रके प्रथम चरणको कहते हैं. * इस प्रकार उक्त भाष्यगाथाके प्रथम चरणके अनुसार क्रमसे बारह, नौ, छह और तीन संग्रह कृष्टियां होती हैं।