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________________ ३६ जयधवलासहिदे कसाय पाहुडे * दिस्समाणयं सव्वहि अनंतभागहीणं । ९९. यत्थमेवं सुतं । संपहि किट्टीकरणद्धाए समयं पडि ओकडुिज्जमाणदव्व विसेस - जाणावणमुवरिममप्पा बहुअसुत्तमाह - * जं पदेसग्गं सव्वसमासेण पढमसमए किट्टीसु दिजदि तं थोवं । विदियसमए असंखेजगुणं । तदियसमये असंखेजगुणं । एवं जाव चरिमादो त्ति असंखेजगुणं । १००. डिसमयमणंत गुणाए विसोहीए वडमाणो सव्विस्से चेव किट्टीकरणद्धाए असंखेज्जगुणमसंखेज्जगुणं पवेसग्गमोकड्डियूण किट्टीसु णिक्खिवदित्ति एसो एदस्स सुत्तस्स समुदायत् । एवतोमुत्तं किट्टीकरणद्धमणुपालिय कमेण किट्टीकारगचरिमसमये वट्टमाणस्स जो परूवणाविसेसो द्विविबंधाविविसओ तव्विहासणट्ठमुत्तरो सुत्तपबंधो * किट्टीकरणद्धाए चरिमसमए संजलणाणं द्विदिबंधो चत्तारि मासा अंतीमुहुत्तमहिया । सेसाणं कम्माणं द्विदिबंधो संखेजाणि वस्ससहस्साणि । १०१. पुम्वुत्तसंधीए संजलणाणं द्विदिबंधो अट्ठवस्तपमाणो होतो कमेण तत्तो परिहाइदूण एत्थुद्दे से अंतो मुहुत्ता हियचतुमासमेत्तो संजावो । सेसाणं पुण कम्माणं द्विदिबंधो संखेज्जवरस सहस्तियादो पुल्लिद्विदिबंधादो संखेज्जगुणहाणीए संखेज्जेहि द्विविबंघोसरणसहस्सेहि ओहट्टिदो वि संतो संखेज्जवस्ससहस्समेत्तो चेव होवूण पयट्टदि ति सुत्तत्य संगहो । * तम्हि चैव किट्टीकरणद्धाए चरिमसमए मोहणीयस्स द्विदिसंतकम्मं संखेजाणि वस सहस्साणि हाइदूण अट्ठवस्सिगमंतोमुहुत्तब्भहियं जादं । तिण्डं घादिकम्माणं * परन्तु दिखनेवाला प्रवेशपुंज सभी कालोंमें अनन्त भागहीन है । ६ ९९. यह सूत्र गतार्थ है । अब कृष्टिकरण कालके प्रत्येक समय में अपकर्षित होनेवाले द्रव्य विशेषका ज्ञान कराने के लिए आगे के अल्पबहुत्व सूत्रको कहते हैं * प्रथम समय में जो प्रदेशपुंज समस्तरूपसे कृष्टियों में दिया जाता है वह सबसे स्तोक है। दूसरे समय में असंख्यातगुणा है। तीसरे समय में असंख्यातगुणा है । इसी प्रकार अन्तिम समय तक दिया जानेवाला प्रदेशपुंज उत्तरोत्तर असंख्यातगुणा है । १०० प्रत्येक समय में अनन्तगुणी विशुद्धिसे वृद्धिको प्राप्त होता हुआ यह जीव समस्त कृष्टिकरण के काल में प्रति समय असंख्यातगुणे असंख्यातगुणे प्रदेशपुंजका अपकर्षण करके कृष्टियों में निक्षिप्त करता है यह इस सूत्रका समुदायरूप अर्थ है । इस प्रकार अन्तर्मुहूर्त तक कृष्टिकरणकालका पालन करके क्रमसे कृष्टिकरणके अन्तिम समय में विद्यमान जीवके स्थितिबन्धादिका जो प्ररूपणा विशेष है उसका व्याख्यान करनेके लिए आगेका सूत्रप्रबन्ध आया है * कृष्टिकरण कालके अन्तिम समयमें संज्वलनोंका स्थितिबन्ध अन्तर्मुहूर्त अधिक चार माह होता है तथा शेष कर्मोंका स्थितिबन्ध संख्यात हजार वर्ष होता है । १०१ पूर्वोक्त सन्धि संज्वलनोंका स्थितिबन्ध आठ वर्षप्रमाण होता हुआ क्रमसे उससे घटकर इस स्थान में अन्तर्मुहूर्त अधिक चार माह हो गया है । परन्तु शेष कर्मोंका स्थितिबन्ध संख्यात हजार वर्षरूप बन्धसे संख्यात गुणहानि द्वारा संख्यात हजार स्थितिबन्धापसरणरूपसे घटकर भी संख्यात हजार वर्षप्रमाण ही होकर प्रवृत्त रहता है यह इस सूत्र का समुच्चयार्थ है । * उसी कृष्टिकरण के कालके अन्तिम समय में मोहनीय कर्मका स्थितिसत्कर्म संख्यात हजार वर्ष घटकर अन्तर्मुहूर्त अधिक आठ वर्ष हो जाता है। तथा तीन घातिकमका स्थिति
SR No.090227
Book TitleKasaypahudam Part 15
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages390
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size38 MB
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