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aaraढोए किट्टीणं गुणगारपरूवणा
रिमरिम किट्टी गुणगारो अनंतगुणो त्ति वत्तथ्यो। कुदो एवं परिचिछज्जदे ? उवरि भणिसमा किट्टी अप्पा बहुप्रदो ।
* तदो विदियाए संगह किट्टीए जहण्णिया किट्टी अनंतगुणा ।
$ १७. तदो लोभपढमसंगह किट्टीए चरिमकिट्टी दो तस्सेव विदियसंगह किट्टीए पढमकिट्टी अनंतगुणा त्ति भणिदं होदि । केम्महंतो एत्थ गुणगारो त्ति आसंकाए इदमाह
* ऐस गुणगारो बारसहं पि संगह किट्टीणं सत्थाणगुणगारेहि अनंतगुणो ।
$ १८. जेण गुणगारेण लोभपढमसंगह किट्टी चरिमकिट्टीए गुणिदाए लोभस्स विदियसंगहकिट्टीए जहणकिट्टी समुप्पज्जदि सो परस्याणगुणगारो ति भण्णदे, संगह किट्टी भेवपणादो एसो बारसहं पि संगह किट्टीणमवयव किट्टीसु पडिबसत्यागगुणगारेहि सोहितो वि अनंतगुणो, कोहत दियसंग्रह किट्टि चरिमसत्याणगुणगारादो वि एदस्साणंतगुणत्तदंसणावो । अदो चैव संगहfight for विरुझ, गुणगारमाहप्पमस्सियूग तदुत्रवतोदो। एतो उवरि लोभविदियसंग्रह - किट्टीए अवयव किट्टी सत्याणगुणगारेणानंतगुणंत्तं पढमसंगह किट्टीभंगेण णेवव्यमिवि पटुप्पायणफलमुत्तरसुत्तं—
* विदियाए संगकिट्टीए सो चेव कमो जो पढमाए संगह किट्टीए ।
१९. गयत्यमेदं सुत्तं ।
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इतनी विशेषता है कि नीचे-नीचेके गुणकारसे उपरिम- उपरिम कृष्टियोंका गुणकार अनन्तगुणा होता है ऐसा कहना चाहिए।
शंका- यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ?
समाधान-आगे कहे जानेवाले कृष्टिसम्बन्धी अल्पबहुत्वसे जाना जाता है ।
* उससे दूसरी संग्रह कृष्टिको जघन्य कृष्टि अनन्तगुणी है ।
$ १७. उससे अर्थात् लोभकी प्रथम संग्रहकृष्टिको अन्तिम कृष्टिसे उसीकी दूसरी संग्रह कृष्टिसम्बन्धी प्रथम कृष्टि अनन्तगुणी है यह उक्त कथनका तात्पर्य है । यहांवर गुणकार कितना बड़ा है ऐसी आशंका होनेपर इस सूत्र को कहते हैं
* यह गुणकार बारहों संग्रह कृष्टियोंके स्वस्थान गुणकारोंसे अनन्तगुणा है ।
१८. जिस गुणकारसे लोभ संज्वलनकी प्रथम संग्रह कृष्टिसम्बन्धी अन्तिम कृष्टिके गुणित करनेपर लोभकी दूसरी संग्रह कृष्टिकी जघन्य कृष्टि उत्पन्न होती है उसे परस्थान गुणकार कहते हैं, क्योंकि संग्रह कृष्टियोंकी भेद विवक्षासे यह गुणकार बारहों संग्रह कृष्टियोंसम्बन्धी अवयव कृष्टियों में प्रतिबद्ध स्वस्थान गुणकारोंको अपेक्षा सभीसे अनन्तगुणा होता है। कारण कि क्रोध की तीसरी संग्रह कृष्टिके अन्तिम स्वस्थान गुणकारसे भी यह गुणकार अनन्तगुणा देखा जाता है और इसीलिए संग्रह कृष्टिसम्बन्धी भेद भी विरोधको प्राप्त नहीं होता, क्योंकि गुणकारके माहात्म्यका आश्रय करके उसकी उत्पत्ति होती है । इससे आगे लोभकी दूसरी संग्रह कृष्टिका गुणकार अवयव कृष्टियों में स्वस्थान गुणकारोंसे अनन्तगुणापना प्रथम संग्रह कृष्टिके समान जानना चाहिए इस प्रकार इस कथन के फलस्वरूप आगेके सूत्रको कहते हैं
* दूसरी संग्रह कृष्टिमें वही क्रम है जो प्रथम संग्रह कृष्टिमें स्वीकार किया गया है।
६ १९. यह सूत्र गतार्थ है ।
१. आ. प्रतौ एत्य इति पाठः ।
२. ता. आ. प्रत्योः अवयवसंगह किट्टोसु इति पाठः ।