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खवगसेढोए दसमगुणटाणसंपत्तिपरूवणा इक्कमादो एत्थेव मोहणीयस्स बंधबोच्छेदो टुव्वो, एतो उवरि तब्बंधकारणपरिणामाण.' मसंभवादो।
* तिण्डं घादिकम्माणं द्विदिबंधो अहोरत्तस्स अंतो।
६७९८ पुग्विल्लसंधिविसये दिवसपुत्तमेत्तो एवेसि टिदिबंधो तत्तो जहाकम परिहाइदूण अहोरत्तस्सतो मुहत्तपुत्तिओ होदूण पयट्टदि त्ति वुत्तं होइ।
*णामागोदवेदणीयाणं बादरसांपराइयस्स जो चरिमो द्विदिबंधो सो संखेज्जेहिं वस्ससहस्सेहिं हाइदण वस्सस्स अंतो जादो।
६७९९. सुगममेवं सत्तं। * चरिमसमयबादरसापराइयस्स मोहणीयस्स द्विदिसंतकम्ममंतोमुहुत्तं । * तिण्हं घादिकम्माणं द्विदिसंतकम्म संखेज्जाणि वस्ससहस्साणि । * णामागोदवेदणीयाणं डिदिसंतकम्ममसंखेज्जाणि वस्साणि ।
5८०० एदाणि सत्ताणि । सुगमाणि एवमणियट्टिकरणद्धं समाणिय संपहि एत्तो से काले जहावसरपत्तं सुहमसांपराइयगुणट्ठाणं पडिवज्जमाणस्स जो परूवणापबंधो तण्णिद्देसकरणट्ठमुत्तरसूत्तारंभो
* से काले पढमसमयसुहुमसांपराइयो जादो । तत्प्रमाणपनेका अतिक्रम न होने के कारण यहींपर मोहनीयको बन्धव्युच्छित्ति जाननी चाहिए, क्योंकि इसके आगे उसके बन्धके कारणभूत परिणामोंका होना असम्भव है।'
* तीन घातिया कर्मोंका स्थितिबन्ध कुछ कम दिन-रात प्रमाण होता है।
६७९८. पूर्वोक्त सन्धिस्थानमें दिवसप्रथक्त्वप्रमाण कर्मोंका स्थितिबन्ध होता था पुनः उससे क्रमशः घटकर कुछ कम दिनरातके भीतर मुहूर्तप्रथक्त्वप्रमाण होकर प्रवृत्त रहता है यह उक्त कथनका तात्पर्य है।
* नाम, गोत्र और वेदनीयकर्मोका बादरसाम्परायिक क्षपक जीवके जो अन्तिम स्थिति- . बन्ध होता है वह संख्यात हजार वर्षसे घटकर एक वर्षके भीतर हो जाता है।
६७९९. यह सूत्र सुगम है ।
* अन्तिम समयवर्ती बादरसाम्परायिक क्षपक जीवके मोहनीयकर्मका स्थितिसत्कर्म अन्तर्मुहूर्त प्रमाण होता है।।
* तीन घातिकर्मो का स्थितिसत्कर्म संख्यात हजार वर्षप्रमाण होता है। * नाम, गोत्र और वेदनीय कर्मोंका स्थितिसत्कर्म असंख्यात वर्षप्रमाण होता है।
६८००. ये सूत्र सुगम हैं। इस प्रकार अनिवृत्तिकरणके कालको समाप्त करके अब इसके आगे तदनन्तर समयम यथावसर प्राप्त सूक्ष्मसाम्परायिक गुणस्थानको प्राप्त होनेवाले क्षपक जीवका जो प्ररूपणाप्रबन्ध है उसका निर्देश करनेके लिए आगेके सूत्रको आरम्भ करते हैं
* तदनन्तर समयमें यह क्षपक जीव प्रथम समयवर्ती सूक्ष्मसाम्परायिक हो जाता है।