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________________ ३१८ वयषवलासहिदे कसायपाहुडै ___* तम्हि चेव समये लोभस्स चरिमसमयवादरसांपराइयकिट्टी संछुब्भमाणा संछुद्धा । ६७९५. तम्हि चेवाणियट्टिचरिमसमये लोभस्स चरिमबादरसांपराइयकिट्टी पुव्वमेवाढविय जहाकम संछुब्भमाणा गिरवसेसं सहुमसांपराइयकिट्टोसु संसुद्धा त्ति वुतं होइ। एदं च उप्पादा. णुच्छेदमस्सियूण परविदं, अण्णहा से काले पढमसमयसुहमसांपराइयभावे वट्टमाणस्स णिरुद्धबादरसांपराइयकिट्टीए सहमकिट्टीस णिरवसेसं संछोहयभावदसणादो। ण केवलं तदियबादरसांपराइय. किट्टी चेव ताधे सुहमसांपराइयकिट्टीस संछुद्धा, किंतु लोभविदियबादरसांपराइयकिट्टीए वि णवकबंधुच्छिट्टावलियवज्ज सव्वमेव पदेसग्गं तत्य संछुद्धमिदि जाणावेमाणो इदमाह * लोभस्स विदियकिट्टीए वि दोआवलियबंधे समयूणे मोत्तण उदयावलियपविट्ठ च मोत्तूण सेसाओ बिदियकिट्टीए अंतरकिट्टीओ संछुब्भमाणीओ संछुद्धाओ। 5 ७९६. गयत्थमेवं सुत्तं । संपहि एत्थेव समये सव्वेसि कम्माणं द्विविबंध-टिदिसंतकम्मपमाणावहारणट्ठमुवरिमं सुत्तपबंधमाह___ * तम्हि चेव लोभसंजलणस्स डिदिबंधो अंतोमुहुत्तं । ६७९७. अणियट्टि०चरिमसमयजहणदिदिबंधस्स लोभसंजलणविसयस्स तप्पमाणत्ताण * उसी समय लोभको अन्तिम समयवर्ती बादरसाम्परायिककृष्टिको संक्रमणको प्राप्त होती हुई संक्रमित हो जाती है। ६७९५. अनिवृत्तिकरणके अन्तिम समयमें लोमको अन्तिम बादरसाम्परायिककृष्टि पहले हो आरम्भ होकर क्रमसे संक्र मत होती हुई पूरी सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टियोंमें संक्रमित हो जाती है। यह उक्त कथनका तात्पर्य है। किन्तु यह कथन उत्पादानुच्छेदका आश्रय लेकर कहा है, अन्यथा तदनन्तर समयमें प्रथम समयवर्ती सूक्ष्मसाम्परायिकभावमें विद्यमान इस क्षपक जीवके विवक्षित बादरसाम्परायि कृष्टिके सूक्ष्मकृष्टियोंमें पूरा संक्रमणभाव देखा जाता है। केवल तीसरी बादरसाम्परायिककृष्टि ही उस समय सूक्ष्मसाम्परायिककृष्टियोंमें संक्रमित नहीं हुई है, किन्तु लोभकी दूसरी बादर साम्परायिककृष्टिके भी नवकबन्ध और उच्छिष्टावलिको छोड़कर पूरा ही प्रदेशपुंज उसमें संक्रमित हुआ है इस बातका ज्ञान कराते हुए इस सूत्रको कहते हैं ___लोभकी दूसरी कृष्टिके भी एक समय कम दो ओवलिप्रमाण नवकबन्धको छोड़कर और उदयावलिमें प्रविष्ट हुए द्रव्यको छोड़कर शेष सब दूसरी कृष्टिको अन्तरकृष्टियाँ संक्रम्यमाण होती हुई संक्रमित हो जाती हैं। ६७९६. यह सूत्र गतार्थ है । अब इसी समयमें सब कर्मोके स्थितिबन्ध और स्थितिसत्कर्मके प्रमाणका अवधारण करनेके लिए आगेके सूत्रप्रबन्धको कहते हैं * उसी समय लोभ संज्वलनका स्थितिबन्ध अन्तर्मुहूर्त प्रमाण होता है। ६७९७. अनिवृत्तिकरणके अन्तिम समयमें लोभ संज्वलनविषयक जघन्य स्थितिबन्धके
SR No.090227
Book TitleKasaypahudam Part 15
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages390
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size38 MB
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