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________________ ३१० जयधवलासहिदे कसायपाहुडे _F ७७९. किं कारणं ? लोभतवियसंगहकिट्टीपदेसादो विवियसंगहकिट्टोपदेसग्गस्स संखेज्जगुणत्तादो। ___ * लोभस्स विदियकिट्टीदो सुहुमसांपराइयकिट्टीए संकमादे पदेसग्गं संखेज्जगुणं । 5७८०. लोभस तदियसंगहकिट्टीआयामादो सुहुमसांपराइयकिट्टीआयामो संखेज्जगुणो भवदि, एदेण कारणेण संखेज्जगुणायामाणुसारेण तत्थ संकामिज्जमाणपदेपग्गं पि संखेज्ज. गुणमेवेत्ति णिच्छेयव्वं, पडिग्गहमाहप्पाणुसारेणेव पडिगेज्झसंकममाणदग्वस्स पवुत्तिअब्भुवगमादो। संपहि एदस्सेव सहुमसांपराइयकिट्टीविसयस्स पवेससंकमप्पाबहुअस्स फुडीकरण?मेत्य संबंधागयं बादरसापराइयकिट्टीविसयं पदेससंकमप्पाबहुसं बादरकिट्टीवेदगपढमसमयप्पहुडि परूवेमाणो सुत्तपबंधमुत्तरमाढवेइ * पढमसमयकिट्टीवेदगस्स कोहस्स विदियकिट्टीदो माणस्स पढमसंगहकिट्टीए संकमदि पदेसग्गं थोवं । ६७८१. किट्टीकरणद्धाए णिदिदाए से काले कोहपढमसंगहकिट्टीमोड्डियूण वेदेमाणो पढमसमयकिट्टोवेदगो णाम । तस्त कोहविदियसंगहकिट्टीदो माणस्स पढमसंगहकिट्टीए जं पदेसग्गमधापवत्तसंकमेण संकमदि तं सम्वत्थोवं, एतो अण्णस्त संकमदब्वस्स थोवयरस्स पपवविसये संभवाणुवलंभादो। ६७७९. क्योंकि लाभको तृतीय संग्रहकृष्टिके प्रदेशमुजसे दूसरी संग्रहकृष्टिका प्रदेशपुंज संख्यातगुणा है। * लोभको दूसरी कृष्टिसे सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टिमें संख्यातगुणे प्रदेशपुंजको संक्रमित करता है। ६७८० क्योंकि लोभकी तीसरी संग्रहकृष्टिके आयामसे सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टिका आयाम संख्यातगुणा होता है, इस कारण संख्यातगुणे आयामके अनुसार उसमें संक्रामित होनेवाला प्रदेशपंज भी संख्यातगुणा ही होता है ऐसा निश्चय करना चाहिए, क्योंकि प्रतिग्रहके माहात्म्यके अनुसार ही प्रतिग्रह्य संक्रममाण द्रव्यको प्रवत्ति स्वीकार की गयी है। अब इसी सूक्ष्म साम्परायिक कृष्टिविषयक प्रदेशसंक्रम अल्पबहुत्वका स्पष्टीकरण करनेके लिए यहाँपर सम्बन्धवश प्राप्त बादरसाम्परायिक कृष्टिविषयक प्रदेशसंक्रम अल्पबहुत्वका बादर कृष्टिवेदकके प्रथम समयसे लेकर प्ररूपणा करते हुए आगेके सूत्रको आरम्भ करते हैं *. कृष्टिवेदकके प्रथम समय में क्रोधकी दूसरी कृष्टिसे मानकी प्रथम संग्रह कृष्टिमें अल्प प्रदेशपुंजको संक्रमण करता है। ६५८१. कष्टकरणकालके समाप्त होनेपर तदनन्तर समयमें क्रोधकी प्रथम संग्रहकृष्टिका अपकर्षण करके वेदन करनेवाला जीव प्रथम समयवर्ती कृष्टिवेदक कहलाता है। क्रोधकी दूसरी संग्रह कृष्टिसे मानकी प्रथम संग्रहकृष्टिमें जो प्रदेशपुंज अधःप्रवृत्त संक्रमके द्वारा संक्रमित होता है वह सबसे स्तोक है, क्योंकि प्रकत विषयमें इससे अन्य संक्रम द्रव्य स्तोकतर नहीं उपलब्ध होता।
SR No.090227
Book TitleKasaypahudam Part 15
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages390
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size38 MB
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