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खवगसेढोए सुहुमसांपरायियविसयकपरूवणा
* कोहस्स तदियकिट्टीदो माणस्स पढमाए संगहकिट्टीए संकमदि पदेसग्गं विसेसाहियं ।
१७८२. एत्थ कारणं बुच्चदे-जा अणुभागेण थोवा संगहकिट्टी तिस्से पदेसगं बहुअं होइ, बहुगादो च पदेसादो संकामिज्जमाणपदेसगं पि बहुअं चेव होदि ति एदेण कारणेण पुसिल्ल. संकमदव्वादो एदं संकमदव्वं विसेसाहियं जादं । केत्तियमेत्तो विसेसो ? पलिदोवमस्स असंखेज्जदि. भागेण खंडिदेयखंडमेत्तो।
* माणस्स पढमादो किट्टीदो मायाए पढमकिट्टीए संकमदि पदेसग्गं विसेसाहियं ।
5७८३. एत्य चोदओ भणइ-किट्टीकरणद्धाए एक्कारस मूलगाहा पडिबद्धाओ। तत्थ जा तदियमूलगाहा सा तिणि अत्थे भणइ। तत्थ जो पढमो अत्यो तम्मि विहासिज्जमाणे बारसहं संगहकिट्टीणं पदेसग्गेण अप्पाबहुअं भणिदं । तं कधं ? माणस्स पढमाए संगहकिट्टीए पदेसग्गं थोवं । विदियसंगहकिट्टीए पदेसग्गं विसेससाहियं । तदियसंगहकिट्टीए पदेसग्गं विसे पाहियं, कोहस्स विवियसंगहकिट्टीए पदेसग्गं विसेसाहियं, तस्सेव तदियसंगहाकट्टीए पदेसग्गं विसेसा हयं । पुणो माया-लोभाणं तिण्हं संगहकिट्टोणं पदेसग्गं जहाकममेव विसेसाहियं होदूण णिवविदं । एत्थ पुण पदेससंकमे भण्णमाणे माणतदिकिट्टीपदेसादो विसेसाहियभावेण टिदकोहविदियसंगहकिट्टीदो माणपढममंगहकिट्टीए अधापवत्तसंकमेण संकममाणपदेसग्गं थोवं भणिदं। तत्तो माण
* क्रोधको तीसरी कृष्टिसे मानको प्रथम संग्रह कृष्टि में विशेष अधिक प्रवेशपंजको संक्रमित करता है।
६७८२. यहाँपर कारणका कथन करते हैं जो अनुभागको अपेक्षा स्तोक संग्रहकृष्टि है उसका प्रदेशपुंज बहुत होता है, और बहुत प्रदेशोंसे संक्रम्यमाण प्रदेशपुंज भी बहुत ही होता है। इस कारण पहलेके संक्रम द्रव्यसे यह संक्रम द्रव्य विशेष अधिक हो गया है।
शंका-कियन्मात्र विशेष अधिक हो गया है ?
समाधान-पल्योपमके असंख्यातवें भागसे भाजित करनेपर जो एक भागप्रमाण प्रदेशपुंज प्राप्त होता है तन्मात्र विशेष अधिक हो गया है।
. * मानको प्रथम कृष्टिसे मायाको प्रथम कृष्टिमें विशेष अधिक प्रवेशपुंजको संक्रमित करता है।
६७८३. शंका-यहाँपर शंकाकार कहता है-कृष्टिकरणकालमें ग्यारह मूल गाथायें प्रतिबद्ध हैं। उनमें जो तीसरी मूलगाथा है वह तीन अर्थोका कथन करती है। उनमें जो प्रथम अर्थ है उसका विशेष व्याख्यान करनेपर वहाँपर बारह संग्रह कृष्टियोंका प्रदेशपंजको अपेक्षा अल्पबहत्व कह आये हैं। वह कैसे ? इसका उत्तर करते हुए कहा है-'मानकी प्रथम संग्रहकृष्टिमें स्तोक प्रदेशपुंज होता है। दूसरी संग्रह कृष्टिमें उससे विशेष अधिक प्रदेशपुंज होता है। उसोको तोसरी संग्रह कृष्टिमें उससे विशेष अधिक प्रदेशपुंज होता है। क्रोधकी दूसरी संग्रहकृष्टिमें उससे विशेष अधिक प्रदेशपंज होता है। तीसरी संग्रहकृष्टिमें उससेविशेष अधिक प्रदेशपुंज होता है। पुनः माया और लोभकी तीनों संग्रह कृष्टियोंका प्रदेशपुंज यथाक्रम विशेष अधिक हो करके प्राप्त होता है। परन्तु यहांपर प्रदेशसंक्रमका कथन करनेपर मानकी तीसरी कृष्टिके प्रदेशपंजसे विशेष अधिकरूपसे स्थित क्रोधकी दूसरी संग्रह कृष्टिसे मानकी प्रथम संग्रह कृष्टिमें अधःप्रवृत्त संक्रमके द्वारा संक्रमित होनेवाला प्रदेश