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खवगसेढीए मायावेदगपरूवणा * डिदिसंतकम्मं सोलस मासा देसूणा । * से काले मायाए तदियकिट्टीदो पदेसग्गमोकड्डियूण पढमद्विदि करेंदि ।
* तेणेव विहिणा संपत्तो मायाए तदियकिट्टि वेदगस्स पढमद्विदीए समयाहियावलिया ससा त्ति ।
* ताधे मायाए चरिमसमयवेदगो । * ताधे दोण्हं संजलणाणं डिदिबंधो अद्धमासो पडिवुण्णो । * ठिदिसंतकम्ममेक्कं वस्सं पडिवुण्णं । * तिण्हं धादिकम्माणं ठिदिबंधो मासपुधत्तं । * तिण्हं घादिकम्माणं हिदिसंतकम्मं संखेजाणि वस्ससहस्साणि । * इदरेसि कम्माणं ठिदिसंतकम्मं असंखेजाणि वस्साणि ।
६७२८. सुगमो च एसो सम्बो सुत्तपबंधो त्ति ण एत्थ वक्खाणायरो, सुगमत्थपरूवणाए गंथगउरवं मोत्तण फलविसेसाणुवलंभादो। णवरि मायावेदगस्स तिण्हं संगहकिट्टोणं तिसु चरिमसंघीसु संजलणाणं ठिविबंधपरिहाणी ट्ठिविसंतपरिहाणो च तेरासियकमेणाणेयव्वा । सव्वासु च
* तथा स्थितिसत्कर्म कुछ कम सोलह माहप्रमाण होता है।
* तदनन्तर समयमें मायाको तीसरी कृष्टिमेंसे प्रवेशपुंजका अपकर्षण करके प्रथम स्थितिको करता है।
* तथा उसी विधिसे मायाको तीसरी कृष्टिका वेदन करनेवाले क्षपक जीवके प्रथम स्थितिमें जब एक समय अधिक एक आवलि काल शेष रहता है ।
* तब वह मायाका अन्तिम समयवर्ती वेदक होता है। * उसमें दोनों संज्वलनोंका स्थितिबन्ध पूरा आधा माहप्रमाण होता है। * तथा स्थितिसत्कर्म पूरा एक माहप्रमाण होता है। * तीन घातिकर्मोका स्थितिबन्ध एक माह पृथक्त्वप्रमाण होता है। * तथा उन्हीं तीन घातिकर्मीका स्थितिसत्कर्म संख्यात हजार वर्षप्रमाण होता है। * तथा इतर कर्मोका स्थितिसत्कर्म असंख्यात वर्षप्रमाण होता है।'
$ ७२८. यह समस्त सूत्र सुगम है, , इसलिए यहाँपर हमने व्याख्यान नहीं किया है। क्योंकि सुगम अर्थको प्ररूपणा करने में ग्रन्थकी गुरुताको छोड़कर कोई फलविशेष नहीं पाया पाता है। इतनी विशेषता है कि मायावेदकको तोनों संग्रह कृष्टियोंकी तीनों अन्तिम सन्धियोंमें संज्वलनोंकी स्थितिबन्धकी हानि और स्थितिसत्कर्मकी हानि त्रैराशिक क्रमसे ले आनी चाहिए १. यहाँ इतर कर्मोंका स्थितिबन्ध संख्यात वर्ष प्रमाण होता है इस आशयका सूत्र मूलमें नहीं पाया है।
मात्र कसायपाहुबसूत्रमें ब्रेकेटमें इसका निर्देश किया गया है । देखो पृ. ८६१ ।