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________________ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे * ताधे तिण्हं संजलणाणं द्विदिबंधो मासो पडिवुण्णो। * संतकम्मं वे वस्साणि पडिवुण्णाणि । 5 ७२७. एत्थ माणवेवगवाए परिहोणासेसटिविसंतकम्मपमाणं वेवस्समेत्तमिदि वटव्वं । अवसेसं सुगमं । * तदो से काले मायाए पढमकिट्टीए पदेसग्गमोकड्डियूण पढमद्विदि करेदि । * तेणेव विहिणी संपत्तो मायापढमकिट्टि वेदयमाणस्स जा पढमहिदी तिस्से समयाहियावलिया सेसा त्ति । * ताधे ठिदिबंधो दोण्हं संजलणाणं पणुववीस दिवसा देखणा। * द्विदिसंतकम्मं वस्समट्ट च मासा देसूणा । * से काले मायाए विदियकिट्टीदो पदेसग्गमोकड्डियूण पढमढिदि करेदि । * सो वि मायाए विदियकिटटीवेदगो तेणेव विहिणा संपत्तो मायाए विदियकिट्टि वेदयमाणस्स जा पढमहिदी तिस्से पढमहिदीए आवलिया समयाहिया सेसा ति। * ताधे डिदिबंधो बीसं दिवसा देसूणा । * उस समय तीन संज्वलनोंका स्थितिबन्ध पूरा एक माहप्रमाण होता है। * तथा उनका स्थितिसत्कर्म पूरा दो वर्षप्रमाण होता है। ६७२७. यहाँपर मानवेदककालसे हीन समस्त स्थितिसत्कर्मका प्रमाण दो वर्षप्रमाण होता है ऐसा जानना चाहिए । शेष कथन सुगम है। * तवनन्तर समयमें मायासंज्वलनकी प्रथम कृष्टिके प्रदेशपुंजका अपकर्षण करके प्रथम स्थितिको करता है। तथा उसी विषिसे मायाको प्रथम कृष्टिका वेवन करनेवाले क्षपक जीवके जो प्रथम स्थिति है उसका जब एक समय अधिक एक आवलि काल शेष रहता है। * तब वो संज्वलनोंका स्थितिबन्ध कुछ कम पच्चीस दिवस प्रमाण होता है। * तथा स्थितिसत्कर्म एक वर्ष और कुछ कम आठ माहप्रमाण होता है। * तदनन्तर समयमें मायासंज्वलनको द्वितीय कृष्टिमेंसे प्रदेशपुंजका अपकर्षण करके प्रथम स्थितिको करता है। * मायांकी दूसरी कृष्टिका वेवक वह जीव भी उसी विधिसे मायाको दूसरो कृष्टिका वेदन करनेवाले क्षपकको जो प्रथम स्थिति है उस प्रथम स्थितिका जब एक समय अधिक एक प्रावलि काल शेष रहता है। ॐ तब उसका स्थितिबन्ध कुछ कम बीस दिवसप्रमाण होता है।
SR No.090227
Book TitleKasaypahudam Part 15
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages390
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size38 MB
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