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बयधवलासहिदे कसार्यपाहुडे किट्टीकारगोश्व उट्टकूडसेढोए तत्थ पदेसविण्णासमेसो करेदि ति एत्तियं चेव पैक्खियूण भणिवत्तादो। संपहि जाओ किट्टोओ अंतरेसु संकामिज्जमाणयेण पदेसग्गेण असुवाओ किट्टीओ णिव्वत्तिज्जति तासि पावणा केरिसी होदि ति आसंकाए णिण्णयविहाणट्ठमुत्तरसुत्तारंभो
* जाओ किट्टीअंतरेसु तासि जहा बन्झमाणयेण पदेसग्गेण अपुव्वाणं णिव्वत्तिजमाणियाणं किट्टीणं विधी तहा कायव्यो।
६५०. जहा बज्झमाणयेण पदेसग्गेण णिव्वत्तिज्जमाणाओ अपुवकिट्टीओ असंखेज्जाणिं किट्टीअंतराणि गंतूण णिन्वत्तिज्जंति, एवमेदाओ वि पलिदोवमस्स. असंखेज्जदिभागमेत्ताणि किट्टीअंतराणि समुल्लंघियूण णिव्वत्तिज्जति; तत्थ विज्जमाणपदेसग्गस्स सेढिपरूवणा वि तहा चेव अणुगंतव्वा; विसेसाभावावो ति भणिवं होदि। संपहि एत्थतणविसेसपदुप्पायणट्ठमुत्तरसुत्तमाह
* गवरि थोवदरगाणि किट्टीअंतराणि गंतूण संछुन्भमाणपदेसग्गेण अपुब्बा किट्टी णिव्वत्तिज्जमाणिगा दिस्सदि। .
६६५१. तत्थ असंखेज्जाणि पलिदोवमपढमवग्गमूलाणि समुल्लंघियूण एगा अपुवकिट्टी बंधेण णिव्यत्तिज्जदि ति पदुप्पाइवं, एत्थ पण पलिदोवमवग्गमूलादो वि असंखेज्जगुणहीणाणि - थोवयराणि चेव किट्टीअंतराणि गंतूण संकामिज्जमाणयेण पदेसग्गेण णिव्यत्तिज्जमाणा अपुल्या
नीचे अलग-अलग पूर्व कृष्टियोंके असंख्यातवें भागमात्र द्रव्यका अपकर्षण करके पूर्व कृष्टियोंके असंख्यातवें भागमात्र अपूर्व कृष्टियोंको करनेवाले कृष्टिकारकके समान उष्ट्रकूटश्रेणिरूपसे उनमें प्रदेशविन्यासको यह करता है, मात्र इतना ही देखकर यह कहा है। अब जिन कृष्टियोंके अन्तरालोंमें संक्रम्यमाण प्रदेशपुंजसे अपूर्व कृष्टियोंको निष्पन्न करता है उनकी प्ररूपणा किस प्रकारकी होती है ऐसी आशंका होनेपर निर्णयका विधान करनेके लिए आगेके सूत्रका आरम्भ करते हैं
जो अपूर्व कृष्टियां कृष्टि-अन्तरालोंमें निष्पन्न की जाती हैं उनको बध्यमान प्रवेशपुंजसे . नियमान अपूर्व कृष्टियोंकी जिस प्रकारको विधि की गयी है उस प्रकारका विधान यहाँ करना चाहिए।
६६५०. जिस प्रकारके बध्यमान प्रदेशपुंजसे निवर्त्यमान अपूर्व कृष्टियां असंख्यात कृष्टि-अन्तराल जाकर निष्पन्न की जाती हैं इस प्रकार ये कृष्टियां भी पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण कृष्टि-अन्तरालोंको उल्लंघन कर निष्पन्न की जाती हैं तथा वहां दीयमान प्रदेशजकी श्रेणिप्ररूपणा भी उसी प्रकार जाननी चाहिए, क्योंकि उससे इसमें कोई विशेषता नहीं है यह उक्त कथनका तात्पर्य है । अब यहाँपर प्राप्त होनेवाले विशेषका कथन करने के लिए आगेका सूत्र कहते हैं
* इतनी विशेषता है कि स्तोकतर कृष्टि अन्तराल जाकर संक्रम्यमाण प्रदेशपुंजसे अपूर्व कृष्टि निर्वयंमान होती हुई दिखाई देती है।
६५१. वहाँ पल्योपमके असंख्यात प्रथम वर्गमूलोंको उल्लंघन कर एक अपूर्व कृष्टि बन्धसे निष्पन्न होती है ऐसा कहा गया है। परन्तु यहाँपर पल्योपमके प्रथम वर्गमूलसे भी असंख्यातगुण हीन स्तोकतर कृष्टि-अन्तर जाकर हो संक्रम्यमाण प्रदेशपुंजसे निर्वयंमान अपूर्व