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खवगसेढोए बज्झमाणपदेसग्गादो विध्वज्जमाणापुव्व किट्टणं परूवणा
कारणं ? ओकडिदसयलदव्वस्सा संखेज्जदि भागमेत्तदव्वावो चेव संगहकिट्टीणं हेट्ठा अपुव्वकिट्टीणं णिव्वत्तणादो ।
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* जाओ किट्टीअंतरेसु ताओ असंखेज्जगुणाओ ।
$ ६४४. एदाओ विपुव्व किट्टीणमसंखेज्जविभागमेत्तोओ चेव, किंतु दव्वविसेसेण पुव्विल्लकिट्टी हितो असंखेज्जगुणाओ जादाओ; ओर्काडदसय लदव्यस्सासंखेज्जा संखेज्जभागमेत्तदव्वं घेतूण किट्टी अंतरे अवकिट्टीणं णिव्वत्तणोवलंभादो ।
* जाओ संगहकिट्टीअंतरेसु तासिं जहा किट्टीकरणे अपुव्वाणं णिव्वत्तिज्जमाणियाणं किट्टीणं विधी, तहा कायव्वो ।
$ ६४५. तत्थ ताव जाओ संगहकिट्टीओ अंतरेसु ओकडिज्जमाणपदेसग्गेणापुव्वाओ किट्टीओ व्वित्तिज्जति परूवणाए जो किट्टीकरणे अपव्याणं णिव्वत्तिज्जमाणाणं किट्टीणं fast goatefact सो चेव णिरवसेसमेत्थाणुगंतव्वो; दिज्जमानपदेसग्गस्स उट्टकूडसेढी आगारेण णिसेगपरूवणं पडि तो भेदाण्वलंभादो । एवं च वुट्टकूडसेढिसामण्णावेषखाए विसेसो णत्थि त्ति भणिदं । अत्थदो पण जोइज्जमाणे तेण विषिणा सरिसो विधी एत्थ ण होदि; थोवयरविसेससंभवादो । तं कथं ? किट्टीकरणद्धाए पढमसमयम्मि किट्टीसरूवेण परिणदपदेसपिंडादो विदियसमयम्मि किट्टीस णिसिच्चमाणपदेस पडो असंखेज्जगुणो भवदि । तदियसमये तासु णिसिच्चमाण
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शंका - इसका क्या कारण है ?
समाधान - क्योंकि अपकर्षित किये गये समस्त द्रव्यके असंख्यातवें भागप्रमाण द्रव्यसे हो संग्रह कृष्टियों के नीचे अपूर्व कृष्टियाँ निपजती हैं ।
कृष्टि अन्तरालोंमें जो अपूर्व कृष्टियाँ निपजती हैं वे असंख्यातगुणी हैं ।
६ ६४४. ये अपूर्वं कृष्टियां भी पूर्व कृष्टियोंके असंख्यातवें भागप्रमाण ही होती हैं, किन्तु द्रव्यविशेष के कारण ये पूर्व कृष्टियोंसे असंख्यातगुणी हो जाती हैं, क्योंकि अपकर्षित किये गये समस्त द्रव्यके असंख्याता संख्यातवें भागमात्र द्रव्यको ग्रहण कर कृष्टि अन्तरालोंमें अपूर्वं कृष्टियोंका उत्पन्न होना पाया जाता है ।
* संग्रह कृष्टि- अन्तरालोंमें जो अपूर्व कृष्टियों निपजती हैं उनकी कृष्टिकरणमें निष्पद्यमान अपूर्व कृष्टियोंकी जो विधि कही गयी है वही विधि यहाँ करनी चाहिए।
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§ ६४५. वहाँ जो संग्रह कृष्टियाँ हैं उनके अन्तरालों में अपकृष्यमाण प्रदेशपंज से जो अपूर्व कृष्टियाँ निपजती हैं, कृष्टिकरणकी प्ररूपणा के समय निर्वत्थंमान अपूर्व कृष्टियोंकी जो विधि पहले कह आये हैं वही पूरी यहां जाननी चाहिए, क्योंकि उष्ट्रकूटश्रेणिके आकारसे निषेकप्ररूपणा प्रति उससे इसमें भेद नहीं पाया जाता । और यह उष्ट्रकूटश्रेणि सामान्यको अपेक्षा भेदरूप नहीं है यह उक्त कथनका तात्पर्य है । विशेषरूपसे देखनेपर तो उस विधिके सदृश यह विधि नहीं है, क्योंकि उससे इसमें थोड़ा भेद सम्भव है ।
शंका- वह कैसे ?
समाधान - कृष्टिकरणकाल के प्रथम समय में कृष्टिरूपसे परिणत प्रदेशपुंजसे दूसरे समय में कृष्टियोंमें खींचा जानेवाला प्रदेशपुंज असंख्यातगुणा होता है । तीसरे समय में उनमें सींचा जाने
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