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________________ खवगसे ढीए अण्णा परूवणा २४३ * एसा कोहकिट्टीए परूवणा । ६१२. एसा सव्वा वि बंधोदयजहण्णुक्कस्सकिट्टीणं णिव्वग्गणपरूवणा कोहपढमसंगहकिट्टीए परविदा, तत्थ बंधोदयाणं दोण्हं पि संभवादो ति वुत्तं होइ। संपहि माणादोणं पढमसंगहकिट्टोसु एण्हिमुदयसंबंधो पत्थि, बंधो चेव केवलं संभवइ । सो च हेट्रिमोवरिमासंखेज्जदिभागपरिहारेण मज्झिमबहुभागसरूवेण पयट्टमाणो पडिसमयमणंतगुणहाणीए दृढव्वो ति इममत्थविसेंसं जाणावेमाणो उवरिमं सुत्तपबंधमाढवेइ होती है अपेक्षा क्रोधकषायके अनुभागके अल्पबहुत्वका निर्देश करते हुए प्रथम बात तो यह स्पष्ट की गयो है कि क्रोधसंज्वलनकी जो तीन संग्रह कृष्टियां हैं उनमेंसे प्रथम संग्रह कृष्टिरूपसे बन्ध और उदय प्रवृत्त होते हुए अधस्तन और उपरिम असंख्यातवें भागको छोड़कर मध्यम कृष्टिरूपसे ही प्रवृत्त होते हैं। और इस प्रकार जो मध्यम कृष्टिया उदयमें प्रवेश करती हैं उनमें जो सबसे उपरिम उत्कृष्ट क्रोधकृष्टि है वह अनन्तगणी हीन होकर तीव्र अनुभागवाली होती है तथा जो बध्यमान अनन्त कृष्टियाँ हैं उनमें जो बध्यमान सबसे उत्कृष्ट कृष्टि है वह पूर्वोक्से अनन्तगुणो होन होती है, क्योंकि उदयको प्राप्त होनेवाली अग्र कृष्टिसे अनन्त कृष्टियां नीचे सरककर इसका अवस्थान प्राप्त होता है। प्रथम समयमें जो अग्रकृष्टि बन्धको प्राप्त होती है उससे दूसरे समयमें विशुद्धिके माहात्म्यवश उदयरूपसे परिणत उत्कृष्ट कृष्टि अनन्तगुणी हानिरूप अनुभागवाली होती है। तथा इसी समय बध्यमान उत्कृष्ट कृष्टि भी उदय कृष्टिकी अपेक्षा अनन्तगुणी हानिरूप परिणम कर प्राप्त होती है। अल्पबहुत्वका यह कम इसी विधिसे कृष्टिवेदकके अन्तिम समय तक जानना चाहिए। आगे इन बन्धरूप और उदयको प्राप्त होनेवाली कृष्टियोंके अनुभागको तीव्रता और मन्दताका निरूपण करते हुए बतलाया है कि प्रथम समयमें बन्धको प्राप्त होनेवाली कृष्टियोंमें जो सबसे जघन्य कृष्टि बंधती है वह आगे उदय और बन्धको प्राप्त होनेवाली कृष्टियोंकी तुलनामें तीव्र अनुभागवाली उससे उसी समय उदयको प्राप्त होनेवाली जो जघन्य कृष्टि होती है उसका अनुभाग अनन्तगुणा हीन होता है। दूसरे समयमें इसकी अपेक्षा बन्धको प्राप्त होनेवाली जघन्य कृष्टि अनन्तगुणे हीन अनुभागवाली होती है तथा उससे उसी समय उदयको प्राप्त होनेवाली जपन्य कृष्टि अनन्तगुणे हीन मनुभागवाली होती है। इस प्रकार अनुभागको तीव्रता-मन्दताको अपेक्षा यह अल्पबहत्व भागे भी इसी प्रकार हदयंगम करना चाहिए । समय-समय में बध और उपयरूप कृष्टियों के अनुभागकी अपेक्षा अनन्तगुणी हानिरूपसे जो अपसरण विकल्परूप निवर्गणाएं प्राप्त होती हैं सम्हें भी इसी विषिसे जान लेना चाहिए। यह सब क्रोषसंज्वलनसम्बन्धी प्रथम संपहरुष्टिको प्रल्पणा है। १२. यह सब बन्ध और उपयरूप बपन्य और उत्कृष्ट कृष्टियोंकी निर्वगणा प्ररूपणा कोषसंज्यकम टिकी अपेक्षा की गयी है, क्योंकि उसमें बम्प और उवय दोनोंको ही प्ररूपणा सम्भव है यह उक कपनका तात्पर्य है। अब मामसंख्यकम माविकी प्रथम संग्रह कष्ठियोंका इस समय सक्यका सम्बन्ध नहीं है, केवल बम ही सम्भव है और वह भषस्तन और उपरिम मसंख्यात भागको छोड़कर मध्यम बहुभागरूपसे प्रवृत्त होता हुमा प्रतिसमय ममन्त गुणहानिरूपसे ही जानना चाहिए इस प्रकार इस मषिशेषका ज्ञान कराते हुए भागेके सूनबम्मको भारम्भ करते है
SR No.090227
Book TitleKasaypahudam Part 15
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages390
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size38 MB
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