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________________ जयधवलास हिदे कसा पाहुडे * किट्टीणं पढमसमये वेदगस्स माणस्स पढमाए संगह किट्टीए किट्टीणमसंखेज्जा भागा बज्झति । २४४ ६६१३. सुगमं । * सेसाओ संग किट्टीओ ण बज्झति । ६१४. एवं पि सुगमं । * एवं मायाए । * एवं लोमस्स वि । ६१५. एवाणि वो वि सुत्ताणि सुगमाणि । एवमेत्तिएण पबंघेण किट्टी वेद पढमसमये किट्टवाणुभागस्स बंधोदय विसयं पवृत्तिविसेसं णिरूविय संपहि तत्येव किट्टीगदाणुभागे संतकम्मस्स जा पृथ्वं परुविदा अणुसमयोवट्टणा सा एवेण सरूवेण पयट्टदि ति फुडीकरेमाणो सुत्तमुत्तरं भणइ* किट्टीणं पढमसमयवेदगो वारसहं पि संगहकिट्टीणमग्गकिट्टिमादि काढूण एक्क्कस्से संगह किट्टीए असंखेज्जदिभागं विणासेदि । ६१६. अनंतगुणविसोहीए वडमाणो एसो पढमसमय किट्टीवेदगो बारसहं पि संगहकिट्टीणमुवरिमभागे उक्कस्सकिट्टिमादि काढूण अनंताओ किट्टीओ एक्केषिकस्से संगह किट्टीए असंखेज्जदिभागमेत्तोओ ओवट्टणाघादेंणेगसमयेण विणासेवि, तेत्तियमेत्तीणं किट्टीणं सत्तीओ कृष्टियोंका प्रथम समय में वेदन करनेवाले क्षपकके मानसंज्वलनको प्रथम संग्रह कृष्टि सम्बन्धी कृष्टियोंका असंख्यात बहुभाग बँधता है । $ ६१३. यह सूत्र सुगम है । * यहाँ शेष दो संग्रह कृष्टियाँ नहीं बंधती हैं। $ ६१४. यह सूत्र भी सुगम है । * इसी प्रकार मायासंज्वलनकी अपेक्षा जानना चाहिए। * तथा इसी प्रकार लोभसंज्वलनकी अपेक्षा भी जानना चाहिए। ६१५. ये दोनों सूत्र भी सुगम हैं । इस प्रकार इतने प्रबन्ध द्वारा कृष्टिवेदकके प्रथम समय में कृष्टिगत अनुभागका बन्ध और उदयविषयक प्रवृत्तिविशेषका निरूपण करके अब वहीं पर कृष्टिगत अनुभागसत्कर्मकी जो पहले अनुसमय अपवर्तना कह आये हैं वह इस रूपसे प्रवृत्त होती है इस बातका स्पष्टीकरण करते हुए आगे सूत्रको कहते हैं * कृष्टियोंका प्रथम समय में वेदन करनेवाला जीव बारहों संग्रहकृष्टियोंको अग्र कृष्टिसे लेकर एक-एक संग्रह कृष्टिके असंख्यातवें भागका विनाश करता है । ६१६. अनन्तगुणी विशुद्धिसे वृद्धिको प्राप्त होनेवाला यह प्रथम समयवर्ती कृष्टिवेदक जीव बारहों संग्रह कृष्टियोंके उपरिम भाग में उत्कृष्ट कृष्टिसे लेकर एक-एक संग्रह कृष्टिकी असंख्यातवें १. आ. प्रती किट्टीत दाणुभाग - इति पाठः ।
SR No.090227
Book TitleKasaypahudam Part 15
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages390
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size38 MB
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