________________
aaraढीए किट्टीवेदमपरिभासत्य परूवण
३३७
एसो वि अत्यो एत्थेव सुत्ते अंतब्भूदो त्ति बटुव्वो । द्विदि-अणुभागोवओ वि सव्वेंस कम्माणं एत्थ समयाविरोहेणाणुगंतव्वो, मुत्तस्सेदस्स वेसामासयभावेणावद्वाणदंसणादो । तदो नवमीए मूलगाहाए अत्यविहासा समत्ता भवदि ।
* एत्तो ताव दो मूलगाहाओ थवणिज्जाओ ।
५९७. किट्टीकरणद्धाएं पडिबद्धाओ एक्कारस मूलगाहा होंति त्ति पुण्यं सामण्णेण भणिदं । विसेसदो पुण एवाओ अनंतरविहासिवाओ णव चेव मूलगाहाओ किट्टीकरणद्वाए पडिबद्धामो, एतो उवरिमाणं दोन्हं मूलगाहाणं किट्टोवेदगाए पडिबद्धत्तदंसणादो । पुम्वुत्तमूलगाहासु वि काओ व किट्टोवेदगद्धाए पडिबद्धाओ अस्थि त्ति णासंकणिज्जं, तासिमुहयत्थ साहारणभावेण पट्टा किट्टीकरणद्धा संबंधेणेव विहाणे विरोहाणुवलंभादो । तदो एत्तो उवरिमाओ वो मूलगाहाओ किट्टीवेदगडापडिबद्धाओ ताव थवणिज्जाओ काढूण किट्टोवेदगस्स परिभासत्यपरूवणमेव ताव सवित्रं कस्सामो; पच्छा गाहासुत्तत्थविहासा भविस्सवि, गाहासुताणं परिभासणत्ये अविहासिदे तेसिमवयवत्थपरामर सलक्खणस्स सुत्तफासस्स करणोवायाभावावो त्ति एसो एवस्स सुत्तस्स भावत्यो । एवमेदास दोन्हं मूलगाहाणं यवणिज्जभावं काढूण किट्टीवेदगस्स परिभासत्य विहासणं कुणमाणो उवरिमं सुत्तपबंधमाह -
तत्प्रायोग्य जघन्य होता है इस प्रकार यह अर्थ भी इसी सूत्र में अन्तर्भूत जानना चाहिए। तथा सभी कर्मोंका स्थिति और अनुभागका उदय भी यहीं पर समयके अविरोधपूर्वक जानना चाहिए, क्योंकि इस सूत्रका देशामर्षक भावसे अवस्थान देखा जाता है। इसके बाद नौवीं मूलगाथाकी अर्थविभाषा समाप्त होती है ।
* इससे आगे अब सर्व प्रथम दो मूल गाथाओंको स्थगित करते हैं ।
$ ५९६. कृष्टिकरण से सम्बन्ध रखनेवाली ग्यारह मूलगाथाएँ हैं यह पहले सामान्यसे कह आये हैं । विशेषरूपसे तो अनन्तर पूर्व जिनकी विभाषा कर आये हैं ऐसी ये नौ मूल गाथाएँ कृष्टिकरणके कालसे सम्बन्ध रखती हैं, इनसे आगेकी दो मूल गाथाएँ कृष्टिवेदकरूप अवस्थासे सम्बन्ध रखनेवाली देखी जाती हैं ।
शंका - पूर्वोक्त मूल गाथाओंमें भी कितनी ही मूल गाथाएं कृष्टिवेदक कालसे सम्बन्ध रखनेवाली हैं ?
समाधान - ऐसी आशंका नहीं करनी चाहिए, क्योंकि वे दोनों ही विषयों में साधारण रूप से प्रवृत्त हैं, इसलिए उनका मात्र कृष्टिकरण अद्धा के सम्बन्धसे विधान करने में कोई विरोध नहीं
पाया जाता ।
इसलिए इससे आगेकी दो मूल गाथाएँ कृष्टिवेदक कालसे सम्बद्ध हैं, अत: उन्हें स्थगित करके कृष्टिवेदककी परिभाषारूप प्ररूपणाको ही सर्वप्रथम विस्तारके साथ कहेंगे, बादमें गाथासूत्र के अर्थकी विभाषा होगी, क्योंकि गाथासूत्रों के परिभाषारूप अर्थकी विभाषा नहीं करनेपर उनके अवयवरूप अर्थका परामर्श करना है लक्षण जिसका ऐसे सूत्रस्पर्शके करने का दूसरा उपाय नहीं पाया जाता इस प्रकार यह इस सूत्र का भावार्थ है । इस प्रकार इन दो मूल गाथाओं को स्थगित करके कृष्टिवेदक के परिभाषारूप अर्थकी विभाषा करते हुए आगे के सूत्र प्रबन्धको कहते हैं