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जयiवलासहिदे कसायपाहुडे
५९४. संपहि एवस्सेव सुत्तस्सत्थं फुडीकरणट्ठमुवरिमं विहासागंथमाह* विहासा ।
५९५. सुगमं ।
* किट्टीणं पढमसमयवेदगस्स संजलणाणं ठिदिबंधो चत्तारि मासा ।
* णामागोदवेदणीयाणं तिन्हं चैव घादिकम्माणं ठिदिबंधो संखेज्जाणि वस्ससहस्वाणि ।
* णामागोदवेदणीयाणमणुभागबंधो तस्समयउक्कस्सगो ।
६५९६. सुगमो च एसो विहासारांथो; तवो ण एत्थ किंचि वक्त्राणेयव्यमत्थि; जाणिवजाणवणे गंथगउरखं मोत्तण फलविसेसाणुवलंभावो । णवरि णामागोववेदणीयाणमणुभागबंधो ओघुक्कस्सो ण होइ, किंतु तप्पा ओग्गुक्कस्सो त्ति जाणावणटुं तस्समयउक्कस्सो ति णिद्देसो । तस्स समयस्स पाओग्गो उक्कस्सो तस्समयउक्कस्सो आदेसुक्कस्सो, तेसिमणुभागबंधो होदि सि वृत्तं होइ । ओधुक्कस्सो पुण एदेसिमणभागबंघो कत्थ होदि ति वृत्ते सुहुमसांपराइय चरिमसमये भविस्सवि; तत्थ सव्वुक्कस्सविसोहीए बज्झमाणस्स तदणुभागस्स ओघुक्कस्स भावसिद्धीए पिडिबंधवलं भादो । तिन्हं घादिकम्माणं मोहणीयस्स च अणुभागबंघो तप्पा ओग्गजहष्णो होदित्ति
५९४. अब इसी सूत्रके अर्थका स्पष्टीकरण करनेके लिए आगेके विभाषाग्रन्थको
कहते हैं
अब इस दूसरी भाष्यगाथाकी विभाषा करते हैं ।
६५९५. यह सूत्र सुगम है ।
* कृष्टियोंका प्रथम समय वेदन करनेवालेके चारों संज्वलनोंका स्थितिबन्ध चार मास होता है ।
* नाम, गोत्र और वेदनीय इन तीनों ही अघातिकमोंका स्थितिबन्ध संख्यात हजार वर्ष प्रमाण होता है ।
* नाम, गोत्र और वेदनीयकमका अनुभागबन्ध उस समयके योग्य उत्कृष्ट होता है ।
$ ५९६. यह विभाषाग्रन्थ सुगम है। इसलिए इसमें कुछ भी व्याख्यान करने योग्य नहीं है, क्योंकि जिसको जान लिया गया है उसका पुनः ज्ञान करनेमें ग्रन्थको गुरुताको छोड़कर अन्य कोई फल विशेष नहीं पाया जाता। इतनी विशेषता है कि नाम, गोत्र और वेदनीय कर्मका अनुभागबन्ध ओघ उत्कृष्ट नहीं होता है, किन्तु तत्प्रायोग्य उत्कृष्ट होता है इस बातका ज्ञान करानेके 'लिए 'तस्समयउक्कस्सो' यह निर्देश किया है। 'तस्स समयस्स पाओग्गो उक्कस्सो तस्समय उक्कस्सो आदेसुक्कस्सो' उस समय के प्रायोग्य उत्कृष्ट अर्थात् आदेश उत्कृष्ट उन कर्मोंका अनुभागबन्ध होता है यह उक्त कथनका तात्पर्य है । परन्तु इनका ओघ उत्कृष्ट अनुभागबन्ध कहाँ होता है ऐसी जिज्ञासा होने पर यह कहा गया है कि सूक्ष्मराम्पसयिक गुणस्थानके अन्तिम समय में होगा, क्योंकि वहाँपर सबसे उत्कृष्ट विशुद्धि के कारण बन्धको प्राप्त होनेवाले उस अनुभागकी ओघ उत्कृष्टपनेकी सिद्धि बिना बाधा के उपलब्ध होती है। तीन घातिकर्मों और मोहनीयकर्मका अनुभागबन्ध