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________________ २३४ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे 5 ५९०. सुगमं । * किट्टीकरणे णिढिदे किट्टोणं पढमसमयवेदगस्स णामागोदवेदणीयाणं द्विदिसंतकम्ममसंखेज्जाणि वस्साणि । * मोहणीयस्स हिदिसंतकम्ममट्ट वस्साणि । * तिण्हं घादिकम्माणं द्विदिसंतकम्मं संखेज्जाणि वस्ससहस्साणि । ६५९१. एदाणि सत्ताणि सुगमाणि। एवं पढमभासगाहाए अत्यविहासणं समाणिय संपहि विदियभासगाहाए अवयारं कुणमाणो इदमाह * एत्तो विदियाए मासगाहाए समुक्कित्तणा। ६५९२. सुगमं। (१५३) किट्टीकदम्मि कम्मे सादं सुहणाममुच्चगोदं च । ____ बंधदि च सदसहस्से द्विदि-अणुभागे सुदुक्कसं ॥२०६॥ ६५९३. एसा विदियभासगाहा अघादिकम्माणं द्विदि अणुभागबंधपमाणावहारणे मुत्तकंठमेंव पडिबद्धा होदूण पुणो घादिक.म्माणं पि हिदिअणुभागबंधपमाणावहारणं देसामासयभावेण सूचेदि त्ति घेत्तव्वं । संपहि एदिस्से अवयवत्थपरूवणं कस्सामो। तं जहा -'किट्टोकदम्मि कम्मे०' पुटवकिट्टीसरूवे किट्टीसरूवेण णिस्सेसं परिणामिम्मि मोहणीयाणुभागसंतकम्मे तदवत्थाए ६५९०. यह सूत्र सुगम है। * कृष्टिकरणके सम्पन्न होनेपर कृष्टियोंका प्रथम समयमें वेदन करनेवाले जीवके नाम, गोत्र और वेदनीय कर्मोका स्थितिसत्कर्भ असंख्यात वर्षप्रमाण होता है। * मोहनीय कर्मका स्थितिसत्कर्म आठ वर्षप्रमाण होता है। * शेष तीन घातिकर्मोंका स्थितिसत्कर्म संख्यात वर्षप्रमाण होता है। ६५९१. ये तीनों सूत्र सुगम हैं। इस प्रकार प्रथम भाष्यगाथाके अर्थकी विभाषा समाप्त करके अब दूसरी भाष्यगाथाका अवतार करते हुए इस सूत्रको कहते हैं अब आगे इस दूसरी भाष्यगाथाको विभाषा करते हैं। ६५९२. यह सूत्र सुगम है। (१५३) मोहनीय कर्मके कृष्टिकरण कर दिये जानेपर सातावेदनीय, शुभ नाम और उच्चगोत्र कर्मोकी शतसहस्र वर्षप्रमाण स्थितिको बाँधता है। तथा इन कर्मोके अनुभागको आदेश उत्कृष्ट बांधता है ॥२०६॥ ६५९३. यह दूसरी भाष्यगाथा अघाति कर्मोके स्थिति और अनुभागबन्धके प्रमाणका अवधारण करने में मुक्तकण्ठसे प्रतिबद्ध होकर पुनः घातिकर्मोंके स्थितिबन्ध और अनुभागबन्धके प्रमाणके निर्णयको भी देशामर्षकभावसे सूचित करती है ऐसा यहाँ ग्रहण करना चाहिए। अब इसके अवयवार्थका प्ररूपण करेंगे। वह जैसे--'किट्टीकदम्मि कदे' पहले जो कर्म अकृष्टिरूपसे परिणत था उसके पूरी तरहसे कृष्टिरूपसे परिणत होनेपर मोहनीय कर्मके अनुभाग सत्कर्मके उस अवस्थामें
SR No.090227
Book TitleKasaypahudam Part 15
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages390
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size38 MB
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