SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 248
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ खवगसेढीए भवसिद्धिकपाओग्गा अण्णा परूवणा २१५ पाओग्गविसये चैव परूवणंतरमाढवेमाणो सुत्तपबंधमुत्तरं भणइ * अदीदे काले जे समयपबद्धा एक्केण पदेसग्गेण पिल्लेविदा ते थोवा । $ ५४६. अदीदकाले पुग्वृत्तणिल्लेवणट्ठाणेसु जत्थ वा तत्थ वा णिल्लेदिज्जमाणा समयपबद्धा एक्क्केण परमाणुणा सेसभूदेण णिल्लेविदा अनंता अत्थि ते सव्वे चेत्र एक्कदो मेलाविदा थोवा होंति; उवरिमवियपपडिबद्धाणमेत्तो बहुत्तदंसणादो । * बेहिं पदेसेहि विसेसाहिया । ५४७. अदीदे काले दोहि दोहिं कम्मपरमाणूह सेसभूदेह जे णिल्लेविदा समयपबद्धा ते पुव्विल्लेहितो विसेसाहिया त्ति वृत्तं होइ । केत्तियमेत्तो विसेसो ? हेट्ठिमत्रियप्पस लागाण मणंतिमभागमेत्तो । तस्स को पंडिभागो ? अभवसिद्धिएहितो अनंतगुणो, सिद्धाणमणंतभागो; एत्थतणगुणवडअद्धाणस्स तप्यमाणत्तोव एसादो । * एवमणंतरोवणिधाए अनंताणि द्वाणाणि विसेसाहियाणि । $ ५४८. एवं तीहि पदेसेहि णिल्लेविदा दिसेसाहिया चदुहि पदेसेहि जिल्लेविदा विसेसाहिया इच्चादिकमेणाणताणि द्वाणाणि विसेसाहियकमेण गंतूण तदो जहण्णद्वाणं पेविखयूण दुगुण कालकी मुख्यता करनेपर उनके इतने होने में कोई विरोध नहीं आता । अब अभवसिद्धिक जीवोंके योग्य विषय में ही दूसरी प्ररूपणाका आरम्भ करते हुए आगे सूत्रको कहते हैं एक-एक परमाणुको लेकर निर्लेपित * अतीत कालमें जो समयप्रबद्ध अन्तमें शेष रहे हुए हैं वे सबसे थोड़े हैं । ६५४६. अतीत कालमें पूर्वोक्त निर्लेपनस्थानों में जहाँ वहीं निर्लेप्यमान समयबद्ध अन्त में शेष रहे एक-एक परमाणु को लेकर निर्लेपित हुए हैं एक साथ मिलाये हुए वे सब सबसे थोड़े होते हैं, क्योंकि उपरिम भेदोंको प्राप्त समयप्रबद्ध इनसे अधिक देखे जाते हैं । * अतीत कालमें जो समयप्रबद्ध अन्तमें शेष रहे दो-दो परमाणुओं को लेकर निर्लेपित हुए हैं वे विशेष अधिक होते हैं । ६५४७. अतीत काल में अन्त में शेष रहे दो-दो परमाणुओंको लेकर जो समयप्रबद्ध निर्लेपित हुए हैं वे पूर्व समयबद्धोंकी अपेक्षा विशेष अधिक होते हैं यह उक्त कथनका तात्पर्य है । शंका- विशेषका प्रमाण कितना है ? समाधान - अधस्तन भेदकी शलाकाओंके अनन्तवें भागप्रमाण है । शंका-उसका प्रतिभाग क्या है ? समाधान - अभव्यों से अनन्तगुणा और सिद्धोंके अनन्तवें भागप्रमाण उसका प्रतिभाग है, क्योंकि यहाँ गुणहानिअध्वानके तत्प्रमाण होनेका उपदेश पाया जाता है । * इस प्रकार एक-एक परमाणुकी वृद्धिके क्रमसे अनन्तरोपनिधाकी अपेक्षा अनन्त स्थान उत्तरोत्तर विशेष अधिक विशेष अधिक हैं । ६५४८. इस प्रकार अन्त में तीन-तीन परमाणुओंको लेकर निर्लेपित हुए समयप्रबद्ध विशेष अधिक हैं । अन्तमें चार-चार परमाणुओं को लेकर निर्लेपित हुए समयप्रबद्ध विशेष अधिक हैं इत्यादि क्रमसे अनन्त स्थान एकके बाद एक विशेष अधिक के क्रमसे जाते हुए तत्पश्चात् जघन्य स्थानको
SR No.090227
Book TitleKasaypahudam Part 15
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages390
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size38 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy