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________________ खवग ढोए चउत्थमूलगाहा २०७ * जाणागुणहाणिसलागाणि थोवाणि । ६५३४. जवमज्मादो हेट्ठिमोवरिमणाणागुणहाणिसलागाओ संपिंडिवाओ थोवाओ ति भणिदं होइ। * एकंतरमसंखेज्जगुणं । ६५३५. एयगुणहाणिट्ठाणंतरमसंखेज्जगुणमिदि वुत्तं होइ । कुदो एक्स्स तत्तो असंखेज्ज. गुणत्तमवगम्मदे ? एवम्हावो चेव सुत्तादो। ण च सुत्तुत्तमण्णहा होइ, विप्पडिसेहादो। एवं च सुत्तं देसामासयं तेण एगादिएगुत्तरकमेण वड्दिाहि सामग्ण द्विदीहिं अंतरिदाणमसामट्टिवीणं च समयाविरोहेण जवमज्झपरूवणा एत्थाणुगंतव्वा। ण च तदियगाहाए एरिसो परूवणा पडि. बद्धा ति आसंकणिज्जं, तत्थ एगादिएगुत्तरकमेण लब्भमाणाणमसामण्णाटिदिसलागाणं जवमज्म. परूवणाए पहाणभावेण पडिबद्धत्तदसणादो। पुणो एक्केक्कसरूवेण जाओ सामण्णट्ठिदीओ लग्भंति तासि सलागाओ थोवाओ। दुगेण विसेसाहिया, तिगेण विसेसाहिया। पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागे दुगुणाओ, पलिदोवमस्स असंखेज्जविभागे जवमज्झमिदि एसा वि जवमज्झपरूवणा एत्येव सुत्ते णिलीणा वक्खाणेयव्या। * एदमक्खवगस्स णादव्वं । ६५३६. एदमणंतरपरूविदं पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागमेत्तं सामण्णट्टिवीणमुक्क नाना गुणहानिशलाकाएं थोड़ी हैं। ६५३४. यवमध्यसे अधस्तन और उपरिम नाना गुणहानिशलाकाएं मिलकर थोड़ी हैं यह उक्त कथनका तात्पर्य है। . * एक गुणहानिस्थानका अन्तर असंख्यातगुणा है। ६५३५. एक गुणहानिस्थानका अन्तर असंख्यातगुणा है यह उक्त कथनका तात्पर्य है। शंका-यह नाना गुणहानिशलाकाओंसे असंख्यातगुणा है यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ? समाधान-इसी सूत्रसे जाना जाता है। उसमें भी यह सूत्र देशामर्षक है इस कारण एकसे लेकर एक-एकके क्रमसे बढ़ी हुई सामान्य स्थितियों और असामान्य स्थितियोंसे अन्तरित आगमके अविरोधपूर्वक यवमध्यप्ररूपणा यहाँपर जाननी चाहिए। इस प्रकारकी प्ररूपणा तीसरी गाथासे सम्बद्ध है ऐसो आशंका नहीं करनी चाहिए, क्योंकि उसमें एकसे लेकर एक-एक अधिकके क्रमसे प्राप्त होनेवाली असामान्य स्थितियोंकी शलाकासम्बन्धी यवमध्यप्ररूपणाकी प्रधानरूपसे प्रतिबद्धता देखी जाती है। पुनः एक-एकरूपसे जो सामान्य स्थितियां प्राप्त होती हैं उनकी शलाकाएं थोड़ी हैं। दो-दोरूपसे प्राप्त होनेवाली सामान्य स्थितियां विशेष अधिक हैं। तीन-तीनरूपसे प्राप्त होनेवाली सामान्य स्थितियां विशेष अधिक हैं। इस विधिसे पल्योपमके असंख्यात भागप्रमाण प्राप्त होनेवाली शलाकाएं दूनी हैं। पल्योपमके असंख्यातवें भागमें यवमध्य होता है । इस प्रकार यह भी यवमध्य प्ररूपणा इसी सूत्र में गर्भित है, अतः उसका व्याख्यान करना चाहिए। * यह प्ररूपणा अक्षपकके जाननी चाहिए। ६५३६. यह अनन्तरपूर्व कहा गया पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण सामान्य स्थितियोंका
SR No.090227
Book TitleKasaypahudam Part 15
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages390
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size38 MB
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