SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 239
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २०६ बयधवलासहिदे कसायपाहुडे * दुअंतरिदा विसेसाहिया। $ ५३२. एवं भणिदे वोहि दोहि असामण्णट्टिदोहि अंतरिदाओ जाओ सामणद्विदीओ तासि सम्वत्थं गहिदसलागाओ पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागमेतीओ होदूण पुग्विल्लसलागाहितो विसेसाहियाओ त्ति घेत्तव्वं । विसेसपमाणमेत्थ पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागेग खंडिदेयखंड, एत्थतणगुणहाणिअद्धाणस्स तप्पमाणत्तादो। * एवं गंतूण पलिदोवमस्स असंखेज्जदिमागे जवमझें । 5 ५३३. "मोत्तूण पुणो एक्क-दो-तिण्णि-चत्तारिआदिअसामण्णद्विदीहिं दोसु वि पासेसु अंतरिदाणं मज्झे समुवलम्भमाणाणं सामण्णढिदोणं सलागामओ घेतूण विसेसाहियकमेण णेदव्वं जाव पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागमेत्ताहिं असामण्णाटुदोहिं अंतरिदाणं सामण्णट्ठिदोणं सलागाओ पढमवियप्पसलागाहितो दुगुणमेत्तीओ जादाओ ति। एवमेदेण कमेण असंखेज्जासु दुगुणबड्डोसु गदासु तदों दोसु वि पासेसु पलिदोवमस्सासंखेज्जदिभागेहितो उवरिमद्विवोहि अंतरिक्सामण्णद्विदीणं सलागाओ घेतूण जवमज्झमुप्पज्जदि ति एसो एक्स्स सुत्तस्स भावत्थो। एत्थ जवमझादो हेटा उवरिं च पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागमेतीओ चेव णाणा गुणवड्डि-हाणिसलागाओ होति । एत्थ जाणागुणहाणिसलागाओ थोवाओ, एयगुणवडिहाणिट्ठाणंतरमसंखेज्जगुणं होदि त्ति इममत्थविसेसं जाणावेमाणो सुत्तमुत्तरं भगइ * दो-दो असामान्य स्थितियोंसे अन्तरित सामान्य स्थितियां विशेष अधिक होती हैं। ६५३२. ऐसा कहनेपर दो-दो असामान्य स्थितियोंसे अन्तरित जो सामान्य स्थितियां पायो जाती हैं, उनकी सर्वत्र ग्रहण की गयो शलाकाएं पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण होकर पूर्वको शलाकाओंसे विशेष अधिक होती हैं ऐसा यहां ग्रहण करना चाहिए। यहाँपर विशेषका प्रमाण पल्योपमके असंख्यातवें भागसे भाजित एक भागप्रमाण है, क्योंकि यहाँ सम्बन्धी गुणहानिअध्वान तत्प्रमाण है। * इस प्रकार क्रमसे जाकर पल्योपमके असंख्यातवें भागके अन्तमें यवयध्य होता है। ६५३३. .......'को छोड़कर पुनः एक, दो, तीन और चार आदि असामान्य स्थितियोंसे दोनों ही पार्श्व भागोंमें अन्तरित होकर मध्यमें समुपलभ्यमान सामान्य स्थितियोंकी शलाकाओंको ग्रहण कर तब तक ले जाना चाहिए जब जाकर पल्यापमक असंख्यातवं भागप्रमाण असामान्य स्थितियोंसे अन्तरित सामान्य स्थितियोंकी शलाकाएं प्रथम विकल्पसम्बन्धी शलाकाओंसे दनी हो जाती हैं। इस प्रकार इस क्रमसे असंख्यात द्विगुणवृद्धियोंके जानेपर तदनन्तर दोनों ही पावं भागोंमें पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण उपरिम स्थितियोंसे अन्तरित सामान्य स्थितिशलाकाओंको ग्रहण कर यवमध्य उत्पन्न होता है यह इस सूत्रका भावार्थ है। यहाँपर यवमध्यसे पहले और आगे पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण ही नाना गुणहानिशलाकाएं होती हैं। यहां नाना गुणहानिशलाकाएं थोड़ी हैं। उनसे एक गुणहानिस्थानान्तर असंख्यातगुणा है इस प्रकार इस अर्थविशेषका ज्ञान कराते हुए आगेके सूत्रको कहते हैं १. ता०-क प्रत्योः ...""मोत्तण इति पाठः ।
SR No.090227
Book TitleKasaypahudam Part 15
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages390
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size38 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy