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खवगसेढीए चमत्थमूलगाहाँ
२०५ गंतूण दुगुणवड्डी जादा । तत्थ जवमझादो हेट्ठिमोवरिमाणपमाणमावलियाए असंखेजविभागो, एत्थ पुण पलिदोवमस्स असंखेज्जविभागो। एवं जाणागुणहाणिसलागाणं पि पमाणविसये भेदो वत्तव्यो। तदो तदियभासगाहाए अत्थविहासा समप्पदि त्ति जाणावेमाणो उवसंहारवक्कमुत्तरं भणइ
* एवं तदियाए गाहाए अत्थो समत्तो। * एत्तो चउत्थीए गाहा अत्यो।
$५३०. असामण्णटिदोहिं अंतरिदाणं सामण्णटिवीणमियत्तावहारणटुं चउत्थीए भास. गाहाए अत्यो एण्हिमहिकोरदि ति वृत्तं होदि।
* सामण्णद्विदीओ एकंतरिदाओ थोवाओ ।
६५३१. एवं भणिवे दोसु वि पासेसु एगेगमसामणद्विवी होदूण पुणो तासि मज्झे जत्तियाओ सामण्णदिदीओ अच्छिदाओ तासि सव्वासि पि एगा सलागा घेत्तव्वा । पुणो वि एवं चेव दोसु वि पासेसु एगेगा चेव असामण्णट्टिदी होवूण पुणो तासि मज्झे जत्तियाओ सामण्णद्विवीओ तासि सव्वासि विदिया सलागा गहेयवा। एवं सम्वत्थ लद्धसलागाओ घेत्तूण एक्कदो मेलाविदे पलिदोवमस्स असंखेज्जविभागमेतीओ सलागाओ होंति । एवाओ थोवाओ, उवरिमवियप्पपडिबद्धसलागाणमेत्तो बहुत्तदंसणादो।
है। परन्तु क्षपकश्रेणिमें आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण स्थान जाकर द्विगुणवृद्धि प्राप्त होती है, क्योंकि वहाँपर यवमध्यसे अधस्तन और उपरिम स्थानोंका प्रमाण आवलिके असंख्यातवें भागरूप होता है। परन्तु यहाँपर वह पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण होता है। इसी प्रकार नाना गुणहानि शलाकाओंका भी प्रमाणविषयक भेदका कथन करना चाहिए। तत्पश्चात् तीसरी भाष्यगाथाकी अर्थविभाषा समाप्त होती है इसका ज्ञान कराते हुए आगे उपसंहारसूत्रको कहते हैं
* इस प्रकार तीसरी भाष्यगाथाका अर्थ समाप्त हुआ। के आगे चौथी भाष्यगाथाके अर्थको विभाषा करते हैं।
६५३०. असामान्य स्थितियोंसे अन्तरित सामान्य स्थितियोंके प्रमाणका अवधारण करनेके लिए चौथी भाष्यगाथाका अर्थ इस समय अधिकृत है यह उक्त कथनका तात्पर्य है।
* एक-एक असामान्य स्थितिसे अन्तरित सामान्य स्थितियां सबसे थोड़ी हैं।
६५३१. ऐसा कहनेपर दोनों ही पावों में एक-एक असामान्य स्थिति होकर पुनः उनके मध्यमें जितनी सामान्य स्थितियां अवस्थित हैं उन सबको एक शलाका ग्रहण करनी चाहिए। फिर भी इसी प्रकार दोनों ही पावों में एक-एक असामान्य स्थिति होकर पुनः उनके मध्यमें जितनी सामान्य स्थितियां होती हैं उन सबकी दूसरी शलाका ग्रहण करनी चाहिए। इसी प्रकार सर्वत्र प्राप्त हुई शलाकाओंको ग्रहण कर एक साथ मिलानेपर वे सब पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण होती हैं। ये सबसे थोड़ी होती हैं, क्योंकि उपरिम भेदोंसे सम्बन्ध रखनेवाली शलाकाएं इनसे बहुत देखी जाती हैं।