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जयवेलासहिंदे कसायपाहुडे
* विदियाए गाहाए अत्थो समतो भवदि ।
* तदियाए गाहाए अत्थो ।
$ ५२८. विवियभासगाहाविहासणानंतर मेतो तवियाए भासगाहाए अत्थो विहासिज्जवे त्ति वृत्तं होइ ।
* असामण्णाओ द्विदीओ एको वा दो वा तिष्णि वा एवमणुबद्धाओ उकस्सेण पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो ।
५२९. जम्हि द्विदिविसेसे समयपबद्धसेसयं वा भवबद्धसेंसयं वा णत्थि सा द्विबी असामण्णा त्ति भण्णदि । जत्य पुण तदुभयं संभव सा सामण्णद्विवी नाम । तत्थ असामण्ण द्विवीजं पाणावहारणमेसा तदियभासगाहाए बिहासा समोइण्णा । तं जहा- जहणेण उभयवो सामणद्विवीहि निरुद्धा एक्का चेव असामण्णट्टिदी होवूण लग्भइ । एवं दो-तिणिविकमेण निरंतरं गंतून उक्कस्सेण पलिदोवमस्स असंखेज्जविभागमेत्तीओ असामण्णद्विदीओ अण्णोष्णाणुगयाओ होंति, अभवसिद्धियपाओग्गविसये तहाविहसंभवस्स परिप्फुडमुवलंभावो । जहा खवगपाओग्गपरूवणाए असामण्णट्टिबीणमप्पाबहुअ मणंतरपरंपरोवणिधाहि भणिदं 'एक्केवकेण असामण्णाओ थोवाओं' इच्चादिकमेण तहा एत्थ वि असामण्ण द्विदिसलागाहिं जवमज्झ गन्भमप्पा बहुअं दव्वं; अण्णा तव्विसयणिष्णयाणुप्पत्तीवो। णवरि एत्थ पलिदोवमस्स असंखेज्जविभागमेत्तसामण्णट्ठिदिसलागाहिं दुगुणवड्डी होदि । खवगसेढोए पुण आवलियाए असंखेज्जविभागमेतद्वाणं
* दूसरी भाष्यगाथाका अर्थ समाप्त होता है ।
* अब तीसरी भाष्यगाथाके अर्थकी विभाषा करते हैं।
५२८. दूसरी भाष्यगाथाकी विभाषाके अनन्तर आगे तीसरी भाष्यगाथाका अर्थ विभाषित किया जाता है यह उक्त कथनका तात्पर्य है ।
* असामान्य स्थितियां एक, दो अथवा तीन होती हैं। इस प्रकार क्रमसे एक-एक अधिक होकर उत्कृष्टसे पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण होती हैं।
६५२९. जिस स्थितिविशेषमें समय प्रबद्धशेष अथवा भवबद्धशेष नहीं होता वह स्थिति असामान्य कही जाती है। किन्तु जिस स्थितिविशेष में सामान्य और असामान्य दोनों स्थितियाँ सम्भव हैं वह सामान्य स्थिति कहलाती है । उनमेंसे असामान्य स्थितियोंके प्रमाणका अवधारण करने के लिए यह तीसरी भाष्यगाथाकी विभाषा अवतीर्ण हुई है । वह जैसे -- जघन्यसे दोनों ओरसे सामान्य स्थितियोंके द्वारा निरुद्ध एक ही असामान्य स्थिति होकर प्राप्त होती है। इसी प्रकार दो, तीन आदिके क्रमसे निरन्तर जाकर उत्कृष्टसे पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण असामान्य स्थितियां एक-दूसरेसे सम्बद्ध होकर प्राप्त होती हैं, क्योंकि अभवसिद्धिक जीवोंके योग्य विषय में उस प्रकारका होना सम्भव है यह स्पष्टरूपसे उपलब्ध होता है। जिस प्रकार क्षपकोंके योग्य प्ररूपणा करते समय असामान्य स्थितियोंका अल्पबहुत्व अनन्तरोपनिधा और परम्परोपनिधाकी अपेक्षा 'एक-एककी अपेक्षा असामान्य स्थितियां सबसे थोड़ी होती हैं' इत्यादि क्रमसे पूर्व में कह आये हैं उसी प्रकार यहाँपर भी असामान्य स्थितियों की शलाका द्वारा यवमध्यगर्भ अल्पबहुत्व जानना चाहिए, अन्यथा तद्विषयक निर्णय नहीं हो सकता। इतनी विशेषता है कि यहांपर पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण असामान्य स्थितियोंकी शलाकाओंके द्वारा द्विगुणवृद्धि होती