________________
खवगसेढीए विदियमूलगाहाए विदियमासगाहा
२०३ ६५२५. कुदो ? पलिदोवमद्धच्छेदणयाणमसंखेज्जविभागपमाणत्तादो। * एगंतरमसंखेज्जगुणं ।
६५२६. कुवो? असंखेज्जपलिदोवमपढमवग्गमूलपमाणत्तादो। एवं समयपबद्धसेसयाणि अस्सियूण विदियभासगाहाए अत्थपरूवणं काढूण संपहि भवबद्धसेसयेसु वि एसा चेव परूवणा गिरवसेसमणुगंतव्वा ति जाणावेमाणो इदमाह
* एवं भवबद्धसेसयाणि ।
$ ५२७. जहा समयपबद्धसेसयाणि द्विदीओ आधारं काढूण भग्गिदाणि एवं चेव भवबद्धसेसयाणि वि णेदव्वाणि, पयदपरूवणाए उभयत्य णाणत्तेण विणा पवुत्तिदंसणादो त्ति भणिदं होदि। एत्थ जवमज्झपरूवणा खबगपाओग्गपरूवणाए कीरमाणाए तदियभासगाहासुत्त. संबंधेण विहासिदो। एत्थ पूण अभवसिद्धियपाओग्गपरूवणाए विदियभासगाहाविहासणावसरे चेव विहासिदा । एवं विहासेमाणस्स सुत्तयारस्स को अहिप्पाओ ति चे ? वुच्चदे-एसो अत्यविसेंसो दोसु वि गाहासुत्तेसु मुत्तकंठमणुवइट्ठो। किंतु अत्यसंबंधेण विहासिज्जदे, तदो तत्थ वा एत्थ वा विहासिदे दोसो णत्थि ति एदेणाहिप्पाएण विवियभासगाहासंबंधेणेवेत्थ पयदत्यविहासा आढता। तदो ण पुवावरविरोहदोससंभवो ति। एवमेत्तिये अत्थे विहासिदे तदो विदियभासगाहाए अत्यविहासा समप्पइ त्ति जाणावणट्ठमुवसंहारवक्कमाह
$ ५२५. क्योंकि वे पल्योपमके अर्धच्छेदोंके असंख्यातवें भागप्रमाण हैं । * उनसे एक गुणहानिस्थानान्तर असंख्यातगुणा है।
६५२६. क्योंकि वह असंख्यात पल्योपमोंके प्रथम वर्गमूलप्रमाण है । इस प्रकार समयप्रबद्धशेषोंका आश्रय लेकर दूसरी भाष्यगाथाके अर्थको प्ररूपणा करके अब भवबद्धशेषों में भी यही प्ररूपणा पूरी जाननी चाहिए इस बातका ज्ञान कराते हुए इस सूत्रको कहते हैं
* इसी प्रकार भवबशेषोंको प्ररूपणा करनी चाहिए।
६५२७. जिस प्रकार स्थितियोंको आधार करके समयप्रबद्धशेषोंकी प्ररूपणा की इसी प्रकार भवबद्धशेषोंकी भी प्ररूपणा करनी चाहिए, क्योंकि दोनों जगह भेद किये बिना प्रकृत प्ररूपणाकी प्रवृत्ति देखी जाती है यह उक्त कथनका तात्पर्य है। यहाँपर यवमध्यप्ररूपणा क्षपकप्रायोग्य प्ररूपणाके करनेपर तीसरी भाष्यगाथासूत्रके सम्बन्धसे विभाषित की। परन्तु यहाँपर अभवसिद्धिक जीवोंके योग्य प्ररूपणामें दूसरी भाष्यगाथाकी विभाषाके समय ही कर आये हैं।
शंका-इस प्रकार विभाषा करनेवाले सूत्रकारका क्या अभिप्राय है ?
समाधान-आगे उसका समाधान करते हैं-यह अर्थविशेष दोनों ही गाथासूत्रोंमें स्पष्टरूपसे नहीं कहा गया है। किन्तु अर्थके सम्बन्धसे विभाषित किया जाता है, इसलिए उस भाष्यगाथामें या इस भाष्यगाथामें विभाषा करने में दोष नहीं है, इसलिए दूसरी भाष्यगाथाके सम्बन्धसे यहाँपर प्रकृत अर्थको विभाषा आरम्भ की गयी है, इसलिए पूर्वापर विरोधरूप दोष सम्भव नहीं है। इस प्रकार इतने अथके विभाषित करनेपर दूसरी भाष्यगाथाके अर्थको विभाषा समाप्त होतो है इसका जान करानेके लिए उपसंहारवाक्यको कहते हैं