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________________ खवगसेढोए पढममूलगाहाए चउत्थभासगाहा . २०१ *णिन्लेवणद्वाणाणमसंखेन्जदिमागे समयपबद्धसेसयाणि । ६१२०. गाणेगसमयपबद्धसेसएहि अविरहिवाओ सध्वाओ द्विदीओ संपिंडिदाओ पिल्लेवणट्ठाणाणमसंखेज्जदिभागमेतीओ चेव, ण तत्तो अविरित्ताओ ति एसो एस्थ सुत्तत्थसंगहो। संपधि एदेणेव संबंधेण एगादि-एगुत्तरेसु हिदिविसेसेसु लद्धावठाणाणं णाणासमयपबद्धसेसयाणमणंतरपरंपरोवणिषाहिं सेढिपरूवणं कुणमाणो सुत्तपबंधमुत्तरं भणइ * समयपबद्धसेसयाणि एकम्हि हिदिविसेसे जाणि ताणि थोवाणि । ६५२१. पुश्वुत्तपिल्लेवणद्वाणाणमसंखेन्जविभागमेत्तद्विविविसेसेसु णाणेगसमयपबद्धसेसयेहिं अविरहिदेसु तत्थ एक्कम्मि टिदिविसेसे केत्तियाणि वि होदूण दिवाणि समयपबद्धसेसाणि अस्थि तेसि गहिदसलागाओ पलिदोवमस्स असंखेज्जविभागमेत्तोओ होदूण सम्वत्योवा ति वुत्तं होइ। * दोसु द्विदिबिसेसेसु विसेसाहियाणि । ६५२२. दोसु दिदिविसेसेसु जाणि सेसभावेण समवट्टिवाणि तेसिं गहिवसलागाओ पुग्विल्लसलागाहितो विसेसाहियाओ भवति । केत्तियमेत्तो विसेसो ? हेट्ठिमरासिस्स असंखेज्जदिभागमेत्तो। तस्स को पडिभागो ? पलिदोवमस्स असंखेज्जविभागो; एत्थतणएगदुगुणवडिअद्धाणस्स तप्पमाणत्तादो। * निर्लेपनस्थानोंके असंख्यात भागमें समयप्रबद्धशेष होते हैं। ६५२०. नाना समयप्रबद्धशेष और एक समयप्रबद्धशेषसे रहित सब स्थितियां मिलाकर निर्लेपनस्थानके असंख्यातवें भागप्रमाण ही होती हैं। उनसे अधिक नहीं होती यह इस सूत्रका समुच्चयरूप अर्थ है । अब इसी सम्बन्धसे एकसे लेकर एक-एक अधिकरूपसे स्थित स्थितिविशेषोंमें जिन्होंने अवस्थान प्राप्त कर लिया है ऐसे नाना समयबद्धशेषोंकी अनन्तरोपनिधा और परम्परोपनिधाको अपेक्षा श्रेणिकी प्ररूपणा करते हुए आगेके सूत्रप्रबन्धको कहते हैं * एक स्थितिविशेषमें जो समयप्रबद्धशेष पाये जाते हैं वे सबसे थोड़े हैं। ६५२१. पूर्वोक्त निर्लेपनस्थानोंके असंख्यातवें भागप्रमाण स्थितिविशेषोंमें नाना समयप्रबद्धशेषों और एक समयप्रबद्धशेषसे युक्त स्थानोंमेंसे एक स्थितिविशेषमें जितने भी समयप्रबद्धशेष अवस्थित रहते हैं उनकी ग्रहण की गयी शलाकाएं पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण होकर सबसे थोड़ी होती हैं यह उक्त कथनका तात्पर्य है। वो स्थितिविशेषोंमें पाये जानेवाले समयप्रबद्धशेष विशेष अधिक हैं। ६५२२. दो स्थितिविशेषोंमें जो समयप्रबद्ध शेषरूपसे अवस्थित हैं उनकी ग्रहण की गयी शलाकाएँ पहलेकी शलाकाओंकी अपेक्षा विशेष अधिक होती हैं। शंका-विशेषका प्रमाण कितना है ? समाधान-अधस्तन राशिका असंख्यातवा भाग है। शंका-उसका प्रतिभाग क्या है ? समाधान-उसका प्रतिभाग पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण है, क्योंकि यहाँका विगुणवृद्धि अध्यान तत्प्रमाण है। २६
SR No.090227
Book TitleKasaypahudam Part 15
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages390
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size38 MB
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