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________________ . खवगसेढोए अटुंममूलगाहाए पढेमभासगाहा १९५ पिल्लेवणकालो समुप्पण्णो ति। एदं च जवमझटाणमुप्पज्जमाणं पिल्लेवणढाणसयलद्धाणस्स असंखेज्जदिभागमेत्तं चेव गंतूण समुप्पण्णमिदि जाणावणट्ठमुत्तरसुत्तारंभो * ठाणाणमसंखेज्जदिमागे जवमझ । ६५०७. आदीवो पहुडि कमवड्डीए जाव एरं ताव आगंतूण पुणो एत्तो उवरि कमहाणीए गमणं पेविखरणेत्थ जवमज्झववएसो पयट्टाविदो । तदो पिल्लेवणटाणाणमसंखेज्जविभागे असंखेज्जदुगुणवडिअद्धाणसमण्णिदे जवमझ होदूण पुणो जवमज्झणिल्लेवट्ठांणकालादो उवरिमणिल्लेवणट्ठाणकालो हायमाणो गच्छदि जाव हेट्ठिमद्धाणादो असंखेज्जगुणमेत्तद्धाणमुवरि गंतूण उक्कस्सणिल्लेवणट्ठाणम्मि णिल्लेविदपुव्वाणं समयपबद्धाणं णिल्लेवणकालो पयवजवमझपरूवणाए चरिमवियप्पो जादो त्ति। सम्वेसु च टाणेसु पादेक्कमवीवकालस्सासंखेज्जविभागमेत्तो चेव जिल्लेवणकालो समुवलखो बटुग्यो । सेसासेसविसेसपरूवणा जाणिय कायव्वा । संपहि एत्थ जवमझादो हेट्ठिमोवरिमणाणागुणहाणिसलागाणं पमाणविसेसावहारण?मुत्तरसुत्तमाह * णाणादुगुणहाणिहाणंतराणि पलिदोवमच्छेदणाणमसंखेज्जदिभागो। ६५०८. एयगुणहाणिटाणंतरेण असंखेज्जपलिदोवमपढमवग्गमूलपमाणेण सयलपिल्लेवणट्ठाणखाणे ओट्टिदे णाणागुणहाणिसलागाओ आगच्छति । तासि च पमाणं पलिदोवमबछेदणयाणमसंखेज्जदिभागमैत्तं चेव होइ। कुदो एदमवगम्मदे ? एवम्हावो चेव सुत्तादो। संपहि एवं होता है। और यह यवमध्यस्थान उत्पन्न होता हुभा निर्लेपनस्थानसम्बन्धो स्यानोंके असंख्यातवें भागप्रमाण ही जाकर उत्पन्न हुआ है इस बातका ज्ञान करानेके लिए आगेके सूत्रका आरम्भ करते हैं * इस विधिसे निर्लेपनस्थानोंके असंख्यातवें भागपर यवमध्य होता है। ६५०७. प्रारम्भसे लेकर क्रमवृद्धिपूर्वक सर्वप्रथम यहां तक आकर पुनः इससे आगे क्रमसे होनेवाली हानिको देखकर यहाँ यवमध्य संज्ञा रखनी चाहिए। इसलिए निर्लेपनस्थानोंके असंख्यातवें भागमें असंख्यात द्विगुणवृद्धिस्थानोंसे युक्त मध्य में यवमध्य होकर पुनः यवमध्य निलेपनस्थानके कालसे उपरिम निर्लेपनकाल घटता हुआ तबतक जाता है जब जाकर अधस्तन स्थानसे असंख्यातगुणे स्थान आगे जाकर उत्कृष्ट निर्लेपनस्थानमें जिनका पहले निर्लेपन किया है ऐसे समयप्रबद्धोंका प्रकृत यवमध्य प्ररूपणाके अन्तिम विकल्परूप निर्लेपनकाल हो जाता है । इस प्रकार और सब स्थानों में प्रत्येक अतीत कालका असंख्यातवां भागप्रमाण हो निर्लेपनकाल उपलब्ध होता है ऐसा जानना चाहिए। शेष समस्त विशेषोंकी प्ररूपणा जानकर करनी चाहिए । अब यहांपर यवमध्यसे अधस्तन और उपरिम नाना गुणहानिशलाकाओंके प्रमाणविशेषका अवधारण करनेके लिए आगेका सूत्र कहते हैं * नाना द्विगुणगुणहानिस्थानान्तर पल्योपमके अर्धच्छेदोंके असंख्यातवें भागप्रमाण हैं। ६५०८. असंख्यात पल्योपमके प्रथम वर्गमूलोंके प्रमाणस्वरूप एक गुणहानिस्थानान्तरसे समस्त निर्लेपनस्थानोंके अध्वानके भाजित करनेपर नाना गुणहानिशलाकाएं आ जाती हैं। उनका प्रमाण पल्योपमके अर्धच्छेदोंके असंख्यातवें भागप्रमाण ही होता है। शंका-यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ? समाधान-इसो सूत्रसे जाना जाता है।
SR No.090227
Book TitleKasaypahudam Part 15
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages390
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size38 MB
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