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________________ १९४ जवषवलासहिदे कसायपाहुडे * समयुत्तरे विसेसाहिओ। ६५०५. जहण्णपिल्लेवणटाणादो समयुत्तरे विवियणिल्लेवणटाणे अच्छिदूण णिल्लेविव. पुवाणं समयपबद्धाणं एसो कालो अवीवकालविसये सव्वत्थ संकलिदसरूवो एगजीवपडिबद्धो पुवुत्तजहण्णट्ठाणपडिबद्धणिल्लेवणकालादो विसेसाहिओ । केत्तियमेत्तो बिसेसो ? पलिदोवमस्स असंखेज्जविभागेण खंडिवेयखंउमेत्तो । असंखेज्जपलिदोवमपढमवग्गमूलपमाणमैत्थतणमेगगुण. हाणिट्ठाणंतरं विरलेयूण जहण्णटाणणिल्लेवणकाले समखंडं कादूण विष्णे तत्थेगरूवपरिवत्तेण तत्तो विवियणिल्लेवणटाणपडिबद्धो एसो णिल्लेवणकालो विसेसाहिओ ति वुत्तं होइ। * पलिदोवमस्स असंखेज्जदिमागमेत्ते दुगुणो। १०६. एवं दुसमयुत्तरतिसमयुत्तरादिकमेण पिल्लेवणकालो अणंतरोवणिधाए विसेसा. हिओ होदूण गच्छमाणो परंपरोवणिषाए पलिदोवमस्स असंखेज्जविभागमेत्तपिल्लेवणट्टाणेसु गदेसु तविथपिल्लेवणकालो जहण्णट्ठाणणिल्लेवणकालावो दुगुणमेत्तो जादो; पुव्वुत्तगुणहाणिमेतविरलणाए सव्वरूवरिवाणमेत्थ पवेसर्वसणावो। पुणो वि एवेणेव कमेण उप्पण्णुप्पण्गद्गुण. वडिट्ठाणमवद्विवगुणहाणिविरलणाए खंडियूण तत्थेगेगखंडं विसेसाहियं कादूण जेवव्वं जाव पलिवोवमस्स असंखेज्जविभागमेत्तदुगुणवडीओ गंतूण तवित्थदुगुणवड्डीए जवमज्ससहवेण * उससे अनन्तर समयसम्बन्धी निर्लेपनस्थानमें स्थित जीवका निर्लेपित पूर्व समयप्रबद्धों. का समुदित काल विशेष अधिक है। ६५०५. जघन्य निर्लेपनस्थानसे अनन्तर समयवर्ती दूसरे निर्लेपनस्थानमें रहकर निर्लेपितपूर्व समयप्रबद्धोंका अतीत कालविषयक सर्वत्र संकलित हुमा यह काल पूर्वोक्त जघन्य स्थानसे सम्बन्ध रखनेवाले निर्लेपनकालसे विशेष अधिक है। शंका-कितना अधिक है ? समाधान-पल्योपमके असंख्यातवें भागका भाग देनेपर जो एक भाग लब्ध आवे उतना अधिक है। अर्थात् असंख्यात पल्योपमोंके प्रथम वर्गमूलप्रमाण यहाँके एक गुणहानिस्थानान्तरको विरलित करके उसे जघन्य निर्लेपनस्थानके कालके समान खण्ड करके देयरूपसे देनेपर वहां जो काल एक अंकके प्रति प्राप्त हो उतना दूसरे निर्लेपनस्थानसे सम्बन्ध रखनेवाला यह निलेपनकाल विशेष अधिक है यह उक्त कथनका तात्पर्य है। * इस विषिसे क्रमसे जाते हुए पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण निर्लेपनस्थानोंके जाने. पर वहाँ अन्तिम निलेपनस्थानका प्राप्त हुआ काल दूना होता है। ५०६. इसी प्रकार दो समय अधिक, तीन समय अधिक आदिके क्रमसे निर्लेपनकाल अनन्तर उपनिषाकी अपेक्षा विशेष अधिक होकर जाता हुआ परम्परोपनिषाकी अपेक्षा पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण निर्लेपनस्थानोंके जानेपर वहां प्राप्त निर्लेपनस्थानका काल जघन्य निर्लेपना स्थानके कालसे दूना हो जाता है, क्योंकि पूर्वोक्त गुणहानिप्रमाण विरलन करनेपर वहां समस्त अंकोंके प्रति प्राप्त कालका यहां प्रवेश देखा जाता है। आगे फिर भी इसी क्रमसे पुनः-पुनः उत्पन्न हए द्विगुणवृद्धिस्थानको अवस्थित गुणहानिके विरलनके द्वारा खण्डित करके उसमें से एक खण्ड. प्रमाण कालको विशेष अधिक करके तब तक ले जाना चाहिए जब जाकर पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण द्विगुणवृद्धियां जाकर वहां प्राप्त हुई वृद्धि में यवमध्यस्वरूपसे निर्लेगनकाल उत्पन्न
SR No.090227
Book TitleKasaypahudam Part 15
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages390
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size38 MB
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