SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 213
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १८० बयधवलासहिदे कसायपाहुडे तस्स परूवणमिदाणि कस्सामी । तं जहा - 'एक्के क्केण सामण्गाओ थोवाओ' एवं भणिवे अट्ठवस्समेत्तखवगपाओगट्टिवीणं मज्झे दोसु वि पासेसु असामण्ण द्विवीहि अंतरिवाओ मज्झे एक्केककाओ होदूणच्छिवसामण्णद्विदीओ णिवदिय गहिदाओ । आवलियाए असंखेज्जदि भागमेतीओ होवूण थोवाओ त्ति गयग्वाओ । 'दुगेण विसेसाहियाओ' एवं भणिदे वो द्दो सामण्णद्विदीओ होवूण पुणो केत्तियाहि मि असामण्ण द्विदीहिं बोसु वि पासेसु णिरुद्ध ओ वासपुषत्तमेतद्विदीसु सव्वत्थ विदिय गहिदाओ विसेसाहियाओ भण्णंति । के त्तियमेत्तो विसेसो ? हेट्ठिम वियप्पसलागाणमसंखेज्जदिभागमेत्तो । तस्स पडिभागो आवलियाए असंखेज्जदिभागो । एवं 'तिगेण विसेसाहियाओ' इच्चादिकमेण गंतूण आवलियाए असंखेज्जविभागे दुगुणबड्डिदाओ । एवं दुगुणवडिदाओ दुगुगवडिदाओ जाव जवमज्झं आवलियाए असंखेज्जदिभागे च जवमज्झमेदं ददृध्वं । तत्तो परमावलियाए असंखेज्जदिभागमेत्तद्धाणमुवरि विसेसहाणीए गंतूण दुगुणहीणाओ । एवं दुगुणहीणा दुगुणहीणा जाव चरिमवियप्पो त्ति । ६ ४७९. अथवा 'एक्केक्केण असामग्णेण अंतरिवाओ सामण्णाओ थोवाओ' एवं भणिदे एक्वकासामण्गविह दोसु वि पासेसु अंतरिदाओ सामण्णद्विदीओ मज्झे केत्तियाओ वि होवूण लब्भंति । तासि गहिबसलागाओ आवलियाए असंखेज्जदि भागमेत्तीओ होवूण थोवाओ भवंति । 'दुगेण अंतरिदाओ विसेसाहियाओ' एत्थ वि पुव्वं व वत्तव्वं । एवं जाव आवलियाए सूचित की गयी है । अत: उसकी प्ररूपणा इस समय करेंगे। वह जैसे – 'एक्केक्केण सामण्णाओ थोवाओ' ऐसा कहने पर आठ वर्षप्रमाण क्षपकप्रायोग्य स्थितियोंके मध्य में दोनों ही पाश्वोंमें असामान्य स्थितियोंके द्वारा अन्तरित बीच में एक-एक होकर स्थित सामान्य स्थितियां प्राप्त हुई ग्रहण की गयी हैं । वे आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण होकर सबसे थोड़ी होती हैं ऐसा ग्रहण करना चाहिए । 'दुगेण विसेसाहियाओ' ऐसा कहनेपर दो-दो सामान्य स्थितियां होकर पुनः कितनी ही असामान्य स्थितियों द्वारा दोनों ही पाश्वमें निरुद्ध होकर वर्षपृथक्त्वमात्र स्थितियों में सर्वत्र प्राप्त हुई ग्रहण की गयी विशेष अधिक कही जाती हैं । शंका - विशेषका प्रमाण कितना है ? समाधान - अधस्तन भेदसम्बन्धी शलाकाओंके असंख्यातवें भागप्रमाण है । और उसका प्रतिभाग आणि असंख्यातवें भागप्रमाण है । इसी प्रकार तीन-तीन रूपसे सामान्य स्थितियाँ विशेष अधिक हैं । इत्यादि क्रमसे जाकर आवलिके असंख्यातवें भाग में द्विगुणवृद्धियां होती हैं। इस प्रकार यवमध्यके प्राप्त होने तक द्विगुणवृद्धियाँ द्विगुणवृद्धियाँ होती हैं। वह यवमध्य आवलिके असंख्यातवें भाग में जानना चाहिए। उससे आगे आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण तक आगे विशेष होनरूपसे द्विगुणहानियाँ होती हैं । इस प्रकार अन्तिम विकल्प के प्राप्त होने तक द्विगुणहानियां द्विगुणहानियाँ होती हैं। $ ४७९. अथवा 'एक्क्केण असामण्णेण अन्तरिदाओ सामण्णाओ थोवाओ' ऐसा कहनेपर एक-एक असामान्य स्थितियोंसे दोनों ही पार्श्व भागों में अन्तरित सामान्य स्थितियां मध्य में कितनी हो होकर प्राप्त होती हैं। उनकी ग्रहण की गयी शलाकाएँ आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण होकर सबसे थोड़ी होती हैं। 'दुगेण अंतरिदाओ विसेसाहियाओ' अर्थात् दो-दो असामान्य स्थितियोंसे दोनों ही पार्श्वभागों में अन्तरित होकर सामान्य स्थितियाँ विशेष अधिक होती हैं । इस प्रकार यहाँपर भी पहले के समान कथन करना चाहिए। इस प्रकार आवलिके असंख्यातवें
SR No.090227
Book TitleKasaypahudam Part 15
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages390
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size38 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy