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खवगसेढोए अट्ठममूलगाहाए तदियभासगाहा
१७७ समुवलंभावो ति? एस दोसो; एगसमयप्रबद्धसेसं पेक्खियूण तत्थ तहा पर विवत्तादो। एत्थ पुण णाणासमयपबद्धपडिबद्धसेसयाणि अस्सियूण उक्कस्सेणावलियाए असंखेज्जविभागसेत्तीओ चेव असामण्णट्टिदीओ होंति त्ति भणिदं तम्हा ण एत्थ को वि दोसावयारो त्ति सिद्धं ।
६४७३. संपहि एक्स्सेव असामण्णटिवीणं जहण्णुक्कस्सपमाणणिद्देसस्स फुडोकरण?मुवरिमं पबंधमाह
* एक्केक्केण असामण्णाओ थोवाओ । दुगेण विसेसाहियाओ। तिगेण विसेसाहियाओ । आवलियाए असंखेज्जदिमागे दुगुणाओ।
$ ४७४. एदस्स सुत्तस्स अत्थे भण्णमाणे अण्णदरसंजलणपयडीए वासपुधत्तावच्छिण्णद्विदोए रचणं काढूण पुणो एत्थ जेत्तियाओ असामण्णदिदीओ सांतरणिरंतरेणावटिदाओ अस्थि ताओ सव्वाओ बद्धीए प्रध कादण ठवेयवाओ। पूणो एत्थ 'एक्कक्केण असामण्णाओ थोवाओ' एवं भणिवे वासपुधत्तमेत्तट्टिदोसु एक्केक्कसरूवेण जाओ द्विदीओ असामण्णाटिदिसलागाओ ताओ थोवाओ त्ति वुत्तं होई । 'दुगेण विसेसाहियाओं' एवं भणिदे णिरंतरं दो हो होदण जाओ द्विदीओ असामण्णदिदीगो तासि सलागाओ विसंसाहियामो त्ति भणिवं होदि। केत्तियमेत्तो विसेसो ? आवलियाए असंखेज्जविभागेण खंडिदेयखंडमेत्तो । एत्थतणगुणहाणिअद्धाणस्स आवलियाए असंखेज्जदिभागपमाणत्तादो। 'तिगेण विसे' एवं भणिदे तिणि तिण्ण होदूण जाओ
समाधान-यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि एक समयप्रबद्धशेषको देखकर वहांपर उस प्रकार कथन किया है। परन्तु यहाँपर नाना समयप्रबद्धोंसे प्रतिबद्ध शेषोंका आलम्बन लेकर उत्कृष्टसे आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण ही असामान्य स्थितियां होती हैं यह कहा है, इसलिए यहाँपर किसी प्रकारका दोष नहीं प्राप्त होता है यह सिद्ध हुआ।
६४७३. अब इसी असामान्य स्थितियोंके जघन्य और उत्कृष्ट प्रमाणके निर्देशको स्पष्ट करने के लिए आगेके प्रबन्धको कहते हैं
* एक-एकरूपसे असामान्य स्थितियां थोड़ी हैं। दो-चोरूपसे वे विशेष अधिक हैं। तीन-तीनरूपसे वे विशेष अधिक हैं। इस प्रकार आवलिके असंख्यातवें भागपर यह क्रम दूना हो जाता है।
६४७४. इस सूत्रके अर्थके कहनेपर किसी एक संज्वलन प्रकृतिको वर्षपृथक्त्व कालप्रमाण स्थितिकी रचना करके पुनः इनमें जितनी असामान्य स्थितियां सान्तर और निरन्तररूपसे अवस्थित हैं उन सबको बुद्धि द्वारा पृथक्-पृथक् करके स्थापित करे। पुनः इनमें 'एक-एकरूपसे असामान्य स्थितियां थोड़ी हैं ऐसा कहनेपर वर्षपृथक्त्वप्रमाण स्थितियोंमें एक-एकरूपसे बो असामान्य स्थितियां स्थित हैं वे थोडी है यह उक्त कथनका तात्पर्य है। 'दो-दोरूपसे वे विशेष अधिक हैं। ऐसा कहनेपर निरन्तर दो-दो होकर जो असामान्य स्थितियां स्थित हैं उनकी शलाकाएँ विशेष अधिक हैं यह उक्त कथनका तात्पर्य है।
शंका-विशेषका प्रमाण कितना है ?
समाधान-आवलिके असंख्यातवें भागसे भाजित करनेपर जो प्रमाण आता है उतना यहां विशेष अधिकका प्रमाण है, क्योंकि यहाँपर वह गुणहानि अध्वान ( लम्बाई ) आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है।
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