________________
१७६
जयधवलासहिदे कसायपाहुडे ६४७१. सामण्णादो अण्णा असामण्णा ति गहणादो जम्हि टिदिविसेसे समयपबद्धसेंसयं भवबद्धसेसयं वा पत्थि सा टिदो असामण्णा ति णिच्छेयव्वा, भव-समयपबद्धसेसयाणमणाहार. भावेणावट्टिदाए तिस्से तव्ववएससिद्धीए णाइयत्तादो । एवं गाहापुम्वद्धमस्सियूण सामण्णा. सामण्णसण्णाणं परूवणं काढूण संपहि गाहापच्छद्धमस्सियूण असामण्णटिदीओ जहण्णुक्कस्सेग णिरंतरमेत्तियमेत्तीओ होंति त्ति इममत्यविसेसं विहासेमाणो सुत्तमुत्तरं भणइ
* एवमसामण्णाओ द्विदीओ एक्का वा दो वा उक्कस्सेण अणुबद्धाओ आवलियाए असंखेज्जदिमागमेतीओ।
5 ४७२. एवं भणिदे अणंतरणिहिटुसरूवाओ असामण्णट्रिशेओ एक्का वा दो वा होति । एवमेगुत्तरवड्डीए गंतूण उक्कस्सेणाव लियाए असंखेज्जविभागमेत्तीओ अण्णोण्णाणुसंबंधाओ लन्भंति, ण तत्तो अहियाओ त्ति भणिवं होइ। विदियभासगाहाए अत्थे भण्णमाणे एक्कम्हि द्विविविसेसे सेसयं भवदि, दोसु वि द्विविविसेसेसु सेसयं भवति । एवं रूवुत्तरकमेण गंतूण उक्कस्सेण सम्वेसु ट्रिविविसेसेसु समयाहियउदयावलियवज्जेसु सेसयं होवि त्ति भणिदं । तत्थ एगट्टिदिविसेसे सेसयं होदि ति भणतेण सेसासेसट्रिदीओ समयपबद्धसेससुण्णाओ असामण्णट्ठिदिसण्णिदाओ होति त्ति जाणाविदं, तेण कारणेण असामण्णट्ठिदणं आवलियाए असंखेज्जदि. भागमेत्तुक्कस्ससंखावहारणमिदं ण घडदे, वासपुधत्तमेत्तीणमसामण्णाटिदीणमुक्कस्सपक्खेणेत्य
६४७१. सामान्यपे अन्य असामान्य कहलाती है ऐसा ग्रहण करनेसे जिस स्थितिविशेषमें समयप्रबद्धशेष और भवबद्धशेष नहीं होते हैं वह स्थिति असामान्य कहलाती है ऐसा निश्चय करना चाहिए, क्योंकि भवबद्धशेष सौर समयप्रवद्धशेषके अनाधाररूपसे अवस्थित उसकी उक्त संज्ञाकी सिद्धि न्यायप्राप्त है। इस प्रकार उक्त सत्रगाथाके पूर्वार्धका आलम्बन लेकर सामान्य और असामान्य संज्ञाओंकी प्ररूपणा करके अब उक्त गाथाके उत्तरार्धका आलम्बन लेकर असामान्य स्थितियां जघन्य और उत्कृष्टरूपसे इतनी होती हैं इस अर्थविशेषका कथन करते हुए आगेके सूत्रको कहते हैं
____ इस प्रकार असामान्य स्थितियां एक अथवा दोसे लेकर उत्कृष्टसे परस्पर संलग्न होकर आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण होती हैं।
६४७२. उक्त सूत्रमें इस प्रकार कहनेपर अनन्तर पूर्व निर्दिष्ट स्वरूपवाली असामान्य स्थितियां एक अथवा दो होती हैं। इस प्रकार आगे एक-एकको वृद्धिरूपसे जाकर उत्कृष्टसे परस्पर संलग्न आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण उपलब्ध होती हैं, उनसे अधिक नहीं होती हैं यह उक्त कथनका तात्पर्य है। इस प्रकार दूसरी भाष्यगाथाके अर्थके कहनेपर एक स्थितिविशेष शेष प्राप्त होता है, दो स्थितिविशेषोंमें भी शेष प्राप्त होता है। इस प्रकार आगे एक-एकके क्रमसे जाकर उत्कृष्टसे एक समय अधिक उदयावलिसे रहित सब स्थितिविशेषोंमें शेष होता है यह उक्त कथनका तात्पर्य है।
शंका-इस क्षपकके एक स्थितिविशेषमें शेष होता है ऐसा कहते हुए आचार्यने, समयप्रबद्धसम्बन्धी शेषसे शून्य असामान्य स्थिति संज्ञावाली शेष समस्त स्थितियां होती हैं, इस बातका ज्ञान कराया है, इस कारण असामान्य स्थितियां आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण होती हैं इस प्रकार संख्याका अवधारण करना घटित नहीं होता, क्योंकि यहाँपर उत्कृष्ट रूपसे वर्षपृथक्त्वप्रमाण असामान्य स्थितियां उपलब्ध होती हैं ?