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________________ १६८ बयधवलासहिदे कसायपाहुडे विसेसेण संभवंति, एगसमयहि जिल्लेविज्जमाणाणं समयपबद्धाणं णाणेगट्ठिदिविसयाणमुवकस्सेण पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागमेत्ताणं चेव संभवोवएसादों । तदो एगम्हि द्विदिविसेसे निरुद्धे एगसमयपबद्ध सेसयमादि काढूण जावुक्कस्सेण पलिदोबमस्स असंखेज्जदिभागमेत्ताणं समयपबद्वाणं याणि संभवंति त्ति एसो एत्य सुत्तत्थसंग हो । एवमेक्कम्हि द्विदिविसेसे समयपबद्धसेसणं पमाणविणिण्णयं काढूण संपहि भवबद्धसेसाणं एगद्विदिविसेसमहि किच्च पमाणानुगमं कुणभाणो सुत्तमुत्तरं भणइ * भवबद्धसेसयाणि वि एक्कम्हि ट्ठिदिविसेसे एक्कस्स वा भवबद्धस्स दोण्हं वा तिण्डं वा एवं गंतूण उक्कस्सेण पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागमेत्ताणं भवबद्धाणं । ४५०. एदस्स वि सुत्तस्स अत्थे भण्णमाणे जहा समयपबद्धसेसयम हिकिच्च परुविदं तहा चैव वत्तव्वं । णवरि समयपबद्धसेसयं णाम एगसमग्रपबद्धमुवेषखदे । भवबद्धसेस पुण एगभव विसयाणा समयपबद्धाणं जहासंभवमुवलब्भमाणाणं सेसयाणि घेत्तूण भबदित्ति एसो विसेसो जाणिव्वो । तदो एक्कम्हि द्विदिविसेसे उक्कस्सेण पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागमेत्ताणि भवबद्धसेसयाणि होवण एगट्ठिदिविसयसमयपबद्ध सेसेहितो असंखेज्जगुणहोणाणि त्ति घेतव्यं । समयप्रबद्ध एक समयमें सम्भव है ऐसा भागमका उपदेश है। इसलिए एक स्थितिविशेषके विवक्षित होने पर उसमें एक समयप्रबद्धशेषसे लेकर उत्कृष्टसे पत्थोपमके नसंख्यातवें भागप्रमाण समयप्रबद्धोंके शेष परमाणु सम्भव हैं वह इस सूत्रका समुच्चयरूप अर्थ है । इस प्रकार एक स्थितिविशेष में समयप्रबद्धशेषों के प्रमाणका निर्णय करके मम भवबद्धशेषका एक स्थितिविशेषको अधिकृत करके प्रमाणका अनुगम करते हुए मागेके सूत्रको कहते हैं Den * एक स्थितिविशेषमें भवबद्धशेष भी एक भवसम्बन्धी, दो भवसम्बन्धी, तीन भवसम्बन्धी या उत्कृष्टसे पत्योपमके असंस्थातवें भागप्रमाण भवसम्बन्धी होते हैं। · ४५०. इस सूत्र का भी अर्थ कहनेपर जिस प्रकार समयप्रबद्धशेषको अधिकृतकर प्ररूपणा की है उसी प्रकार इसकी भी प्ररूपणा करनी चाहिए। इतनी विशेषता है कि समयप्रवद्धशेष एक समयबद्ध की अपेक्षा से निर्दिष्ट किया गया है । किन्तु भवत्रद्धशेष एक भवविषयक यथासम्भव उपलभ्यमान नाना समयप्रबद्धोंके शेषको ग्रहण कर निर्दिष्ट किया गया है इस प्रकार इन दोनोंमें इतना अन्तर जानना चाहिए । अतः एक स्थितिविशेषमें उत्कृष्टसे पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण भवबद्धशेष होकर वे एक स्थितिसम्बन्धी समयप्रबद्धशेषोंको अपेक्षा असंख्यातगुणे हीन होते हैं ऐसा यहाँ ग्रहण करना चाहिए । विशेषार्थ - यहाँ प्रकृतमें उपयोगो समयप्रबद्धशेष और भवबद्धशेषके अर्थको स्पष्ट करके एक स्थितिविशेष में समयप्रबद्ध शेषका कमसे कम एक परमाणु पाया जाता है और अधिक से अधिक अनन्त परमाणु पाये जाते हैं । तथा भवबद्धशेषकी विवक्षा में एक स्थितिविशेष में कम से कम एक भवसन्बन्धी और अधिकसे अधिक पत्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण भवोंसम्बन्धी शेष पाये जाते हैं ऐसा यहाँ समझना चाहिए । यहाँ समयप्रबद्धशेष में एक समयबद्धसम्बन्धी परमाणु विवक्षित हैं और भवबद्धशेषमें कमसे कम एक भवसे लेकर अधिक से अधिक पल्योपमके संख्यातवें भागप्रमाण भवसम्बन्धी समयप्रबद्धशेष विविक्षित हैं ।
SR No.090227
Book TitleKasaypahudam Part 15
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages390
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size38 MB
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